Patna: अल्व्रेट आइंस्टीन जो विश्व के प्रसिद्ध महान भौतिकविद है। इन्होंने भौतिकी के कई नियम दिए जैसे सापेक्ष ब्रह्मांड, केशिकीय गति, क्रांतिक उपच्छाया, सांख्यिक मैकेनिक्स, अणुओं का ब्राउनियन गति, अणुओं की उत्परिवर्त्तन संभाव्यता, एक अणु वाले गैस का क्वांटम सिद्धांत, कम विकिरण घनत्व वाले प्रकाश के ऊष्मीय गुण, विकिरण के सिद्धांत, एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत और भौतिकी का ज्यामितीकरण आदि। इसके लिए इन्हें नोबल पुरुष्कार से भी सम्मानित किया गया।
पूरे विश्व में कई महान हस्तियां का जन्म हुआ, जिन्होंने देश को कुछ न कुछ विशेष दिया ही है। क्या आप जानते है भारत देश में भी एक ऐसे महान पुरुष का जन्म हुआ है। जिन्होंने आइंस्टीन के सिद्धांतो (Einstein’s theory) को भी मात दे डाली। उस महान हस्ती का नाम वशिष्ठ नारायण सिंह (Vashishtha Narayan Singh) है, जो एक महान गणितज्ञ है। ये भारत के बिहार राज्य से है।
नारायण सिंह जी ने आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी (Theory Of Relativity) जैसे प्रसिद्ध सिद्धांत को टक्कर दिया। हमेशा से यही पढ़ा है और सुना है की आज तक आइंस्टीन जैसे ज्ञानी पैदा ही नहीं हुए परंतु नारायण जी ने अपने ज्ञान से लोगो का यह भ्रम भी तोड़ डाला, तो आइए विस्तार से जानते है कोन है यह महानहस्ती।
वशिष्ठ नारायण जी बिहार (Bihar) राज्य के पटना (Patna) जिले के अंतर्गत आने वाला गांव बसंतपुर मे 2 अप्रैल 1942 को जन्मे। इनके पिता का पेशे से सैनिक यानी पुलिस कॉन्स्टेबल थे। नारायण जी पांच भाई बहन थे। परिवार में आर्थिक तंगी हमेशा ही रही। पर यह गरीबी उनके मार्ग में कभी बाधा नहीं बनी। उनकी प्रतिभा में कभी कोई कमी नही आई।
वशिष्ठ नारायण में बालपन से ही कुछ विलक्षण थे। उनका दिमाग अन्य बच्चो से बेहद ज्यादा तेज चलता था। उनके तेज दिमाग ने उनकी गरीब परिस्थियों को तक मात दे दी। उन्होंने अपने दम पर पटना यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने तक के समय में लोग उन्हे केबल एक होशियार विद्यार्थी समझते थे।
जब उन्होंने यूनिवर्सिटी में जाना प्रारंभ किया और उनके द्वारा किए गए कुछ कारनामों ने सभी लोगो को चौका दिया। नारायण मैथ में ना केबल अपने बल्कि अपनी कक्षा से उच्च कक्षा के सवाल हल करते थे। जो लोगो के लिए बेहद चोकाने वाला था।
नारायण जी के कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ नागेंद्र नाथ जो खुद भी एक गणित के प्रोफेसर थे। वह सिंह जी से बेहद परेशान हो चुके थे। क्योंकि नारायण अपनी कक्षा के शिक्षकों से काफी कठिन सवाल पूछ लेते थे जो टीचर को भी नही आता था और कभी जब कोई भी टीचर कक्षा में गलत पढ़ाते तो वे टीचर को ही डांट लगा देते थे।
जिससे वे कक्षा में इंसल्टिंग महसूस करते थे। इन सब से परेशान डॉक्टर नाथ ने उन्हें सबक सिखाना चाहा इस के लिए उन्होंने नारायण के लिए खुद एग्जाम पेपर सेट किया उस पेपर में वे सवाल थे जो उन्हे कभी किसी ने नहीं पढ़ाया।फिर जब वशिष्ठ का पेपर जांचा गया तो टीचरो की आंखे चोंध्या गई।
वशिष्ट ने उन सभी सवालों को सही तरीके से कई विधियां से हल किया हुआ था। उनके सारे जवाब सही थे। उनकी इस परीक्षा के बाद वशिष्ठ के लिए यूनिवर्सिटी के रूल्स को बदला गया। नियम के तहत वशिष्ठ को पहले वर्ष में ही बीएससी को पूरा करा दिया गया। पहले वर्ष में ही उन्होंने फाइनल ईयर की परीक्षा दी
जिसमे उन्होंने डिस्टिंक्शन के साथ पूरी कक्षा में टॉप किया।
कॉलेज के दूसरे वर्ष में उन्हे एमएससी की अंतिम वर्ष की परीक्षा देने के लिए अनुमति दी गई।एमएससी फाइनल ईयर के कई होसियार विद्यार्थियो ने सिंह जी के कारण फाइनल ईयर ड्रॉप कर दिया। क्योंकि वे नही चाहते थे कि उनकी टॉप रेंक नारायण के कारण रह जाए।
वशिष्ठ नारायण सिंह बिहार की राजधानी पटना के साइंस कॉलेज के विद्यार्थी थे। इसी बीच कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली ने नारायण को देखा और उन्हे समझा। नारायण की प्रतिभा को कैली ने बखूबी पहचान लिया था। इसलिए वे वर्ष 1965 में वशिष्ठ नारायण सिंह को स्वयं के खर्चे पर अमेरिका ले गए।
यह वही अपोलो मिशन है, जिसने इंसान को चांद तक पहुंचाया था। इस मिशन के चलते कुछ वक्त के लिए नासा के कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए थे। तभी वशिष्ठ नारायण सिंह ने अपनी गणित लगाकर एक हिसाब किया। जब कंप्यूटर चालू हुए तो वशिष्ठ का हिसाब और कंप्यूटर का हिसाब एक दम सही था।
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? ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ अर्थ :'' हे! परमेश्वर ,हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों (गुरू और शिष्य) को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें''। ''सौंदर्य लहरी''की महिमा ;- 17 FACTS;- 1-सौंदर्य लहरी (संस्कृत: सौन्दरयलहरी) जिसका अर्थ है “सौंदर्य की लहरें” ऋषि आदि शंकर द्वारा लिखित संस्कृत में एक प्रसिद्ध साहित्यिक कृति है। कुछ लोगों का मानना है कि पहला भाग “आनंद लहरी” मेरु पर्वत पर स्वयं गणेश (या पुष्पदंत द्वारा) द्वारा उकेरा गया था। शंकर के शिक्षक गोविंद भगवदपाद के शिक्षक ऋषि गौड़पाद ने पुष्पदंत के लेखन को याद किया जिसे आदि शंकराचार्य तक ले जाया गया था। इसके एक सौ तीन श्लोक (छंद) शिव की पत्नी देवी पार्वती / दक्षिणायनी की सुंदरता, कृपा और उदारता की प्रशंसा करते हैं।सौन्दर्यलहरी/शाब्दिक अर्थ सौन्दर्य का
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