सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

---------------:साधना-मार्ग में भैरवी की अवधारणा:--

-------------- *********************************** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव भगवान पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अद्भुत अलौकिक अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन परामानसिक जगत की दिशा में चक्र का उन्मेष तो पहले ही हो चुका था, अब वह क्रियाशील अवस्था में है। शक्ति तो निराकार होती है, वह अनुभव का विषय है, लेकिन अत्यन्त आश्चर्य का विषय है जिस पर सहसा कोई विश्वास करने को तैयार नहीं होगा। लेकिन कभी-कदा आवश्यकता पड़ने पर कुण्डलिनी-शक्ति साकार रूप भी धारण कर सकती है। चमेली (गुरुदेव के निवास पर झाड़ू, पोंछा, भोजन, बर्तन आदि का काम करने वाली लड़की) जैसी किसी माध्यम द्वारा प्रकट होकर साधक के पास आती है और मार्गदर्शन भी करती है। तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि तांत्रिक साधना-भूमि में भैरवी का महत्वपूर्ण स्थान है। बिना भैरवी के साधक अपने साधना-मार्ग में निर्विघ्न सफल हो ही नहीं सकता। इसके अनेक कारण हैं। सच बात तो यह है कि पूरा तंत्र-शास्त्र काम-शास्त्र पर आधारित है, इसलिए कि चार पुरुषार्थो में तीसरा पुरुषार्थ 'काम' है। 'काम' सिद्ध होने पर ही चौथा पुरषार्थ 'मोक्ष' उपलब्ध हो सकता है। काम की मूलशक्ति साक्षात स्त्रीस्वरूपा है और वह पुरुष के मूलाधार चक्र में (कुण्डलिनी-शक्ति के रूप में विद्यमान है। वह प्राकृतिक है, स्वयंभू है इसीलिए तांत्रिक साधना-भूमि में स्त्री का विशेष महत्व है। स्त्री के दो रूप हैं--*भोग्या* रूप और दूसरा *पूज्या* रूप। भोग्या रूप इस अर्थ में है कि स्त्री में जो नैसर्गिक शक्ति है जिसे हम 'काम की मूल शक्ति' भी कह सकते हैं, वह साधना- भूमि में साधक के लिए आन्तरिक रूप से उपयोगी सिद्ध होती है। उसी के आधार पर साधना में सफलता प्राप्त करता है साधक और अन्त में प्राप्त करता है उच्च अवस्था को भी। स्त्री में उसकी नैसर्गिक शक्ति को जागृत करना और उसे 'नियोजित' करना अत्यन्त कठिन कार्य है। यह गुह्य कार्य है और इसके सम्पन्न होने पर विशेष तांत्रिक क्रियाओं का आश्रय लेकर स्त्री को *भैरवी दीक्षा* प्रदान की जाती है जिसके फलस्वरूप भैरवी में 'मातृत्व का भाव' उदय होता है। तन्त्र-भूमि में 'मातृत्व भाव' बहुत ही महत्वपूर्ण है। तंत्र-साधना के जितने गुह्य और गंभीर अनुभव हैं, उनमें एक यह भी अनुभव है कि विशेष तांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा पूज्यभाव से साधक अपने सामने पूर्ण नग्न स्त्री को यदि देख लेता है तो वह सदैव-सदैव के लिए स्त्री और स्त्री के आकर्षण से मुक्त हो जाता है। संसार में तीन सबसे बड़े आकर्षण हैं-- धन का आकर्षण, लोक का आकर्षण और स्त्री का आकर्षण। इन्हें 'वित्तैषणा','लोकैषणा' और 'दारैषणा' भी कहा जाता है। दारैषणा का आकर्षण सबसे बड़ा होता है क्योंकि उसके मूल में कामवासना होती है जिसके संस्कार-बीज जन्म-जन्मान्तर से आत्मा के साथ जुड़े हुए हैं। स्त्री के आकर्षण से मुक्त होने के बाद स्त्री साधक के लिए माँ के अतिरिक्त और कुछ नहीं रहती। यहाँ यह भी बतला देना आवश्यक है कि इसी तांत्रिक प्रक्रिया द्वारा यदि स्त्री पुरुष को पूर्ण नग्न देख ले तो वह भी सदैव के लिए पुरुष और उसके आकर्षण से मुक्त हो जाती है।( यह कार्य तभी संभव है जब स्त्री-पुरुष एक दूसरे को सम्पूर्ण रूप से नग्न देखते समय एक विशेष तांत्रिक प्रक्रिया से गुजरते हैं, साधारण रूप से नग्न देखते समय नहीं, क्योंकि उस समय तो कामवासना और भी ज्यादा बढ़ जाती है। आज तंत्र-साधना केंद्रों पर यही कुछ हो रहा है। वह अनुकरण परम्परा का तो कर रहे हैं लेकिन वह विशेष तांत्रिक प्रक्रिया को नहीं जानते। फलस्वरूप ये केंद्र ऐय्यासी के अड्डे बन गए हैं।) यह एक वैज्ञानिक तथ्य भी है। जैसे तंत्र-शास्त्र काम-शास्त्र पर आधारित है उसी प्रकार काम-शास्त्र भी मनोविज्ञान पर आश्रित है। Sabhar shiv ram tiwari punrjanm Facebook wall

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

क्या है आदि शंकर द्वारा लिखित ''सौंदर्य लहरी''की महिमा

?     ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥  अर्थ :'' हे! परमेश्वर ,हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों  (गुरू और शिष्य) को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें''।      ''सौंदर्य लहरी''की महिमा   ;- 17 FACTS;- 1-सौंदर्य लहरी (संस्कृत: सौन्दरयलहरी) जिसका अर्थ है “सौंदर्य की लहरें” ऋषि आदि शंकर द्वारा लिखित संस्कृत में एक प्रसिद्ध साहित्यिक कृति है। कुछ लोगों का मानना है कि पहला भाग “आनंद लहरी” मेरु पर्वत पर स्वयं गणेश (या पुष्पदंत द्वारा) द्वारा उकेरा गया था। शंकर के शिक्षक गोविंद भगवदपाद के शिक्षक ऋषि गौड़पाद ने पुष्पदंत के लेखन को याद किया जिसे आदि शंकराचार्य तक ले जाया गया था। इसके एक सौ तीन श्लोक (छंद) शिव की पत्नी देवी पार्वती / दक्षिणायनी की सुंदरता, कृपा और उदारता की प्रशंसा करते हैं।सौन्दर्यलहरी/शाब्दिक अर्थ सौन्दर्य का

क्या हैआदि शंकराचार्य कृत दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम्( Dakshinamurti Stotram) का महत्व

? 1-दक्षिणामूर्ति स्तोत्र ;- 02 FACTS;- दक्षिणा मूर्ति स्तोत्र मुख्य रूप से गुरु की वंदना है। श्रीदक्षिणा मूर्ति परमात्मस्वरूप शंकर जी हैं जो ऋषि मुनियों को उपदेश देने के लिए कैलाश पर्वत पर दक्षिणाभिमुख होकर विराजमान हैं। वहीं से चलती हुई वेदांत ज्ञान की परम्परा आज तक चली आ रही  हैं।व्यास, शुक्र, गौड़पाद, शंकर, सुरेश्वर आदि परम पूजनीय गुरुगण उसी परम्परा की कड़ी हैं। उनकी वंदना में यह स्त्रोत समर्पित है।भगवान् शिव को गुरु स्वरुप में दक्षिणामूर्ति  कहा गया है, दक्षिणामूर्ति ( Dakshinamurti ) अर्थात दक्षिण की ओर मुख किये हुए शिव इस रूप में योग, संगीत और तर्क का ज्ञान प्रदान करते हैं और शास्त्रों की व्याख्या करते हैं। कुछ शास्त्रों के अनुसार, यदि किसी साधक को गुरु की प्राप्ति न हो, तो वह भगवान् दक्षिणामूर्ति को अपना गुरु मान सकता है, कुछ समय बाद उसके योग्य होने पर उसे आत्मज्ञानी गुरु की प्राप्ति होती है।  2-गुरुवार (बृहस्पतिवार) का दिन किसी भी प्रकार के शैक्षिक आरम्भ के लिए शुभ होता है, इस दिन सर्वप्रथम भगवान् दक्षिणामूर्ति की वंदना करना चाहिए।दक्षिणामूर्ति हिंदू भगवान शिव का एक

पहला मेंढक जो अंडे नहीं बच्चे देता है

वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके