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मंगलवार, 9 अगस्त 2022

---------------:साधना-मार्ग में भैरवी की अवधारणा:--

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-------------- *********************************** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव भगवान पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अद्भुत अलौकिक अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन परामानसिक जगत की दिशा में चक्र का उन्मेष तो पहले ही हो चुका था, अब वह क्रियाशील अवस्था में है। शक्ति तो निराकार होती है, वह अनुभव का विषय है, लेकिन अत्यन्त आश्चर्य का विषय है जिस पर सहसा कोई विश्वास करने को तैयार नहीं होगा। लेकिन कभी-कदा आवश्यकता पड़ने पर कुण्डलिनी-शक्ति साकार रूप भी धारण कर सकती है। चमेली (गुरुदेव के निवास पर झाड़ू, पोंछा, भोजन, बर्तन आदि का काम करने वाली लड़की) जैसी किसी माध्यम द्वारा प्रकट होकर साधक के पास आती है और मार्गदर्शन भी करती है। तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि तांत्रिक साधना-भूमि में भैरवी का महत्वपूर्ण स्थान है। बिना भैरवी के साधक अपने साधना-मार्ग में निर्विघ्न सफल हो ही नहीं सकता। इसके अनेक कारण हैं। सच बात तो यह है कि पूरा तंत्र-शास्त्र काम-शास्त्र पर आधारित है, इसलिए कि चार पुरुषार्थो में तीसरा पुरुषार्थ 'काम' है। 'काम' सिद्ध होने पर ही चौथा पुरषार्थ 'मोक्ष' उपलब्ध हो सकता है। काम की मूलशक्ति साक्षात स्त्रीस्वरूपा है और वह पुरुष के मूलाधार चक्र में (कुण्डलिनी-शक्ति के रूप में विद्यमान है। वह प्राकृतिक है, स्वयंभू है इसीलिए तांत्रिक साधना-भूमि में स्त्री का विशेष महत्व है। स्त्री के दो रूप हैं--*भोग्या* रूप और दूसरा *पूज्या* रूप। भोग्या रूप इस अर्थ में है कि स्त्री में जो नैसर्गिक शक्ति है जिसे हम 'काम की मूल शक्ति' भी कह सकते हैं, वह साधना- भूमि में साधक के लिए आन्तरिक रूप से उपयोगी सिद्ध होती है। उसी के आधार पर साधना में सफलता प्राप्त करता है साधक और अन्त में प्राप्त करता है उच्च अवस्था को भी। स्त्री में उसकी नैसर्गिक शक्ति को जागृत करना और उसे 'नियोजित' करना अत्यन्त कठिन कार्य है। यह गुह्य कार्य है और इसके सम्पन्न होने पर विशेष तांत्रिक क्रियाओं का आश्रय लेकर स्त्री को *भैरवी दीक्षा* प्रदान की जाती है जिसके फलस्वरूप भैरवी में 'मातृत्व का भाव' उदय होता है। तन्त्र-भूमि में 'मातृत्व भाव' बहुत ही महत्वपूर्ण है। तंत्र-साधना के जितने गुह्य और गंभीर अनुभव हैं, उनमें एक यह भी अनुभव है कि विशेष तांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा पूज्यभाव से साधक अपने सामने पूर्ण नग्न स्त्री को यदि देख लेता है तो वह सदैव-सदैव के लिए स्त्री और स्त्री के आकर्षण से मुक्त हो जाता है। संसार में तीन सबसे बड़े आकर्षण हैं-- धन का आकर्षण, लोक का आकर्षण और स्त्री का आकर्षण। इन्हें 'वित्तैषणा','लोकैषणा' और 'दारैषणा' भी कहा जाता है। दारैषणा का आकर्षण सबसे बड़ा होता है क्योंकि उसके मूल में कामवासना होती है जिसके संस्कार-बीज जन्म-जन्मान्तर से आत्मा के साथ जुड़े हुए हैं। स्त्री के आकर्षण से मुक्त होने के बाद स्त्री साधक के लिए माँ के अतिरिक्त और कुछ नहीं रहती। यहाँ यह भी बतला देना आवश्यक है कि इसी तांत्रिक प्रक्रिया द्वारा यदि स्त्री पुरुष को पूर्ण नग्न देख ले तो वह भी सदैव के लिए पुरुष और उसके आकर्षण से मुक्त हो जाती है।( यह कार्य तभी संभव है जब स्त्री-पुरुष एक दूसरे को सम्पूर्ण रूप से नग्न देखते समय एक विशेष तांत्रिक प्रक्रिया से गुजरते हैं, साधारण रूप से नग्न देखते समय नहीं, क्योंकि उस समय तो कामवासना और भी ज्यादा बढ़ जाती है। आज तंत्र-साधना केंद्रों पर यही कुछ हो रहा है। वह अनुकरण परम्परा का तो कर रहे हैं लेकिन वह विशेष तांत्रिक प्रक्रिया को नहीं जानते। फलस्वरूप ये केंद्र ऐय्यासी के अड्डे बन गए हैं।) यह एक वैज्ञानिक तथ्य भी है। जैसे तंत्र-शास्त्र काम-शास्त्र पर आधारित है उसी प्रकार काम-शास्त्र भी मनोविज्ञान पर आश्रित है। Sabhar shiv ram tiwari punrjanm Facebook wall

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