तंत्र साधना में मंत्रों का विशेष महत्व है। इन मंत्रों में प्रमुख होता है उस मंत्र का बीज अक्षर। जैसे सरस्वती का बीज है ऐम् काली का बीज है कलीम् इसी प्रकार अलग अलग देवी देवताओं के लिए एक विशेष बीज अक्षर होता है जो स्वयं में पूर्ण मंत्र भी होता है। इन अक्षरों से एक विशेष प्रकार की ध्वनि या नाद उत्पन्न किया जाता है जिनकी डिजाइन और शेप भी एक विशेष प्रकार के बनते हैं। ये अक्षर हमारे ऋषि मुनीयों ने एक विशेष प्रकार की शक्ति का आहवाहन करने के उद्देश्य से खोजे। इन बीज अक्षरों का संबंध हमारी रीढ़ की हड्डी से लगी शुष्मना नाड़ी में स्थित अलग अलग चक्रों से है। तो जब साधक पूर्ण शुद्धी के साथ मंत्रों का जप करता है तो एक निश्चित केंद्र पर ऊर्जा का धक्का देता है। जिससे धीरे धीरे उस अमुक चक्र की शुद्धी होती है और उस चक्र से ऊर्जा के विस्फोट शुरू हो जाते हैं। इसी उत्पन्न ऊर्जा को ऋषि मुनियों ने सिद्धी नाम दिया। अर्थात सरस्वती और बगला कंठ को सिद्धी देती हैं। महालक्ष्मी नाभी को सिद्धी देती हैं। शिव हृदय को सिद्धी देते हैं। इन पृयोगों में अलग अलग सिद्धियों के लिए विशेष प्रकार की गंध का भी पृयोग किया जाता है। इसकी वजह थी की जब अमुक सिद्धी उत्पन्न होती हैं। तो एक विशेष प्रकार की गंध उत्पन्न करती हैं। तो पृक्रिया को सहज करने उन विशेष गन्धों को पहले से ही साधना में शामिल कर लिया जाता है। यही वजह रही कि आज भी पूजा पाठ में धूप बत्ती लोहाँग पान इत्यादि शामिल किये जाते हैं। सनातनी पूजा पाठ और तंत्र मंत्र इत्यादि सब वैज्ञानिक युक्तियों से निर्मित किये गए थे। मगर पुराने लोगों ने इन पृक्रियाओं को बाँटना उचित नहीं समझा कि कहीं कोई इन शक्तियों का गलत पृयोग ना करे। समय बीतता गया और ये विध्याएँ लुप्त होती चली गई। सनातनी का यह विज्ञान समाप्त होने लगा और ज्ञान ना होने के कारण लोग इसे अंधविश्वास से अधिक कुछ नहीं समझते। sabhar punarjanm Facebook wall जय श्री गुरु महाराज जी की। 🙏🙏🙏💐💐💐🙏🙏🙏।।।
बुधवार, 3 अगस्त 2022
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