सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

आकाशीय पिंडों से बचाव की योजना

आकाशीय पिंडो से पृथ्वी को बचाने के लिए वैज्ञानिको ने एक सम्मलेन में विचार किया इस पर दो तरीके से बचाव किया जा सकता है पहेला की उलका पिंडो को विस्फोट कर के उड़ा दिया जाय परन्तु इससे जो टुकरे होंगे वो प्रथ्वी पर नुकसान पहुचासकते है दूसरा तरीका है एक विशालकाय ट्रक्टर जो बहूत बड़ा यान होगा से धका देकर उसका स्थान परिवातित करके दिसा का परिवर्तन कर दिया जाय इसके लिए नासा ने २०२० तक के उलका पिंडों को निपटने के लिए १०० अरब डालर का खर्च बताया है परन्तु इसके लिए नासा के पास धन की कमी है यह सही भी है की प्राकृतिक आपदा से कोई एक देश या संस्था नहीं निपट सकती इसके लिए समूहीक प्रयास करने होगे

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

vigyan ke naye samachar ke liye dekhe

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पहला मेंढक जो अंडे नहीं बच्चे देता है

वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके...

क्या है आदि शंकर द्वारा लिखित ''सौंदर्य लहरी''की महिमा

?     ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥  अर्थ :'' हे! परमेश्वर ,हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों  (गुरू और शिष्य) को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें''।      ''सौंदर्य लहरी''की महिमा   ;- 17 FACTS;- 1-सौंदर्य लहरी (संस्कृत: सौन्दरयलहरी) जिसका अर्थ है “सौंदर्य की लहरें” ऋषि आदि शंकर द्वारा लिखित संस्कृत में एक प्रसिद्ध साहित्यिक कृति है। कुछ लोगों का मानना है कि पहला भाग “आनंद लहरी” मेरु पर्वत पर स्वयं गणेश (या पुष्पदंत द्वारा) द्वारा उकेरा गया था। शंकर के शिक्षक गोविंद भगवदपाद के शिक्षक ऋषि गौड़पाद ने पुष्पदंत के लेखन को याद किया जिसे आदि शंकराचार्य तक ले जाया गया था। इसके एक सौ तीन श्लोक (छंद) शिव की पत्नी देवी पार्वती / दक्षिणायनी की सुंदरता, कृपा और उदारता की प्रशंसा करते हैं।सौन्दर्यलहरी/शाब्दिक अर्थ...

लघु दुर्गा सप्तशती

{{{ॐ}}}                                                          #लघु_दुर्गा_सप्तशती ॐ वींवींवीं वेणुहस्ते स्तुतिविधवटुके हां तथा तानमाता, स्वानंदेमंदरुपे अविहतनिरुते भक्तिदे मुक्तिदे त्वम् । हंसः सोहं विशाले वलयगतिहसे सिद्धिदे वाममार्गे, ह्रीं ह्रीं ह्रीं सिद्धलोके कष कष विपुले वीरभद्रे नमस्ते ।। १ ।। ॐ ह्रीं-कारं चोच्चरंती ममहरतु भयं चर्ममुंडे प्रचंडे, खांखांखां खड्गपाणे ध्रकध्रकध्रकिते उग्ररुपे स्वरुपे । हुंहुंहुं-कार-नादे गगन-भुवि तथा व्यापिनी व्योमरुपे, हंहंहं-कारनादे सुरगणनमिते राक्षसानां निहंत्रि ।। २ ।। ऐं लोके कीर्तयंती मम हरतु भयं चंडरुपे नमस्ते, घ्रां घ्रां घ्रां घोररुपे घघघघघटिते घर्घरे घोररावे । निर्मांसे काकजंघे घसित-नख-नखा-धूम्र-नेत्रे त्रिनेत्रे, हस्ताब्जे शूलमुंडे कलकुलकुकुले श्रीमहेशी नमस्ते ।। ३ ।। क्रीं क्रीं क्रीं ऐं कुमारी कुहकुहमखिले कोकिले, मानुरागे मुद्रासंज्ञत्रिरेखां कुरु कुरु सततं श्रीमहामारि गुह्ये । तेजोंगे सिद्धिन...