{{{ॐ}}}
#
कुण्डलिनी जागरणका दुसरा उपाय है नियमित मंत्र जप। यह एक बहुत ही शक्तिशाली , सरल एवं निरापद मार्ग है परन्तु निस्संदेह यह एक साधना है जिसमें अपेक्षा कृत अधिक समय तथा धैर्य की आवश्यकता होती है ।
पहलेतो मंत्र और योग के किसी ऐसे योग्य गुरू से अनुकूल मंत्र लेना होता है जो साधना मार्ग में पथ प्रदर्शन कर सके।
जब आप मंत्र का निरन्तर अभ्यास करते रहते है तो आंतरिक शक्ति में वृद्धि होती है इससे जीवन मे तटस्थ रहने के दृष्टिकोण का विकास होता है।
जिस प्रकार किसी शांत झील मे कंकड फेंकने पर उसमे तरंगे उत्पन्न होती है उसी प्रकार मंत्र को बार बार दोहराने से मन रूपी समुद्र मे भी तरंगें उत्पन्न होती है लाखों करोडों बार उसी मंत्र को दोहराने से मस्तिक का कोना कोना उससे झंकृत हो जाता है । इससे आपके शारीरिक , मानसिक एवं आध्यात्मिक तीनो स्तरो का शुद्धिकरण हो जाता है।
मंत्र का उच्चारण मानसिक और मनोविज्ञानिक स्तरो पर ध्वनि मे मंद गति से किया जाना चाहिए ।। इन चारो स्थितियों मे मंत्र का अभ्यास करने से कुण्डलिनी जागरण बिना परेशानी के सही ढगं से होता है मंत्र को श्वास के साथ मानसिक रूप से दोहराया जा सकता है और कीर्तन भी जा सकता है उससे मुलाधार पर भी काफी प्रभाव पडता है जहॉ से कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है।
स्वर अथवा संगीत के द्वारा कुण्डलिनी जागरण भी लगभग मंत्रयोग की तरह ही है जिसे नादयोग कहते है इससे ध्वनियां बीच मंत्रो की तरह कार्य करती है क्यो कि संगीत मे राग अथवा सुर चक्र विशेष से संबधित है। जागरण का यह सबसे सौम्य ढगं है। sabhar sakti upasak agyani Facebook wall
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
vigyan ke naye samachar ke liye dekhe