{{{ॐ}}}
#विचित्र
मनुष्यों की जिज्ञासा आवश्यकता व जिज्ञासा ही ज्ञान विज्ञान की तरफ लेजाती है विज्ञान ने हमे नये सुख के साधन दिये पर फिर हम अधूरा महसूस करते है हम गरीब या अमीर स्त्री या पुरूष हमे एक खोज रहती हम अपने को अधुरा महसूस करते है किसे केपास झोपड़ी या महल पैदल हो या महंगी गाडी पर सब को साढे तीन फुट चौडी ओर छः फुट लम्बी आप जिन्दा है तो भी और मर गये तो भी कोई करोड़ों कमाकर भी चार रोटी खाता है और कोई भीख मांग कर भी कोई बहुत बडी जमीन का मालिक है और किसी के पास एक इंच भी नही पर रहते सब जमीन पर ही!
प्रत्येक जिनके शरीर पर रोम (शल्क भी रोम मे ही सम्मिलत है)क्यो होते ? मूलाधार चक्र मे ही प्रजनन अंग क्यो है? केन्द्र से ही सब भूतो( पदार्थों) का नियन्त्रण क्यो होता है? सभी प्राणियों मे पाव कछुए के पांवो के स्थान पर ही क्यो? मस्तिष्क सहस्रार मे ही क्यो? प्रभामण्डल क्या है? सभी पदार्थों से निकलने वाली तरंगें क्यो है? देव और दानवरूप जीव जन्तु भी सर्वत्र है, आधुनिक विज्ञान भी ब्रह्माण्ड की छाया ढूढ रहा है यह वही स्थान है जहां ब्रह्माण्ड की ऋण तरंगें निकलती है।
और वैदिक व्याख्या ये अनुसार यह ईशान कोण की ओर साठ डिग्री कोण पर नीचे झुका हुआ तो इसकी छाया इससे कई गुणा बडी है यही ऋण ब्रह्माण्ड है और इसमे भी प्राणियों एवं शक्तियों का अस्तित्व है वैदिक विद्वानों का कथन है कि ऊर्जा शरीर प्राणी भी होते है और यह भी हो सकता है कि किसी विशेष तारे के ग्रह पर वह आक्सीजन की जगह पर अग्नि की लपटों से जीवनशक्ति प्राप्त करता हो
चेतना स्थल संयोग के समीकरण का फल नही है अपितु चेतना सर्वत्र व्याप्त है और इसके अनगिनत रूप है स्थूल शरीर तो यह अपनी प्रकृति को अनुसार निर्मित करता है पृथ्वी की परिस्थितियों मे बने शरीर मे आक्सीजन की आवश्यकता है तो यह आवश्यक नही कि किसी अन्य ग्रह की परिस्थितियों मे निर्मित शरीर मे भी उस शरीर को आक्सीजन चाहिए परिस्थितियों ये अनुसार शरीर, भोजन और आक्सीजन की मात्रा आदि का अभूतपूर्व अन्तर तो पृथ्वी पर भी प्राणियों मे दिखाई पडता है । मछली से लिए आक्सीजन से अधिक उसे पानी की आवश्यकता होती है कुत्ते को सडा गला मांस पोषण देता है। पर मनुष्य उसे खाते ही मर जाता है इसलिए किसी विशेष संयोग को जीवन का कारण मानना मुर्खतापूर्ण सिद्धांत है रशियन वैज्ञानिको ने 1500 डिग्री फेर नाईट पर अग्नि भक्षण करने वाले जीवाणु की तलाश की है
आपके सामने मच्छर है ये वातावरण को प्रतिरोधी तत्त्वों से किस तरह एड जस्ट करते है इसका अनुभव आपको हो रहा है इसलिए कोई भी संयोग या परिस्थिति जीवनतत्त्व का कारण नही है चेतना का मूल बीज उत्पन्न नही होता अपितु चेतना का मूल वास्तव मे है शेष सभी निर्माण वह अपनी शक्ति से परिस्थितियों को अनुसार करता है
ध्यान के दो प्रयोजन है प्रथमतया सभी साधक सिध्दयों की तरफ दौडते है कुछ विरले ही साधक है जो मोक्ष कामना रखते है ध्याता वैराग्युक्त क्षमाशील श्रध्दालु तथा मोहादि से रहित होना चाहिए ध्यान ध्येय ध्यानप्रयोजन को जानकर उत्साह पूर्वक अभ्यास करे ध्यान से थक जाये तो जप करे पुनः ध्यान करे इस तरह क्रमशः कर अजपा जप का अभ्यास करे
१२ प्राणायामों की एक धारणा होती है १२धारणाओ काएक ध्यान होता है एवं १२ ध्यान की समाधि कही जाती है समाधि मे साधक स्थिर भाव मेस्थिर रहता है और ध्यान स्वरूप से शुन्य हो जाता है सर्वत्र बुध्दि प्रकाश फैलता है विज्ञानमय शरीर में प्रवेश कर बाद मे अानन्दमय कोश शरीर मे प्रवेश कर परमानन्द को प्राप्त होता है
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