ध्यान करने बैठते हैं तो मन भटकने क्यों लग जाता है?

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ध्यान करने बैठते हैं तो मन भटकने क्यों लग जाता है?

भटकने लगता है, ऐसा नहीं है! हमेशा गतिशील रहने वाले मन से आपका साक्षात्कार होता है !

पहले यह समझिये मन क्या है, और ध्यान क्या है, फिर इसकी गति समझ आएगी!

मन विचारों, भावों, समृति, कल्पना रूपी प्रक्रिया का नाम है जो मस्तिष्क रूपी अंग में सदा चली रहती है !

ध्यान किसी एक विचार के अटूट प्रवाह का नाम है!

जब हम ध्यान करने बैठते हैं तो मन के भीतर निरंतर चलायमान यह गतिविधि हमारी जागरूकता में आ जाती है !

इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं! यह तो अच्छा ही है ! कम से कम बेहोशी की तन्द्रा तो टूटी !

अब करना क्या है ताकि मन को एक नयी आदत में ढाला जाये जिसे हम ध्यान कहते हैं!

इस गति को रोकने का प्रयास न करें! इसके प्रति बस जागरूक रहें! विचार उठा है, चला भी जायेगा! बस छोड़ना सीखें! बह जाने दें इस प्रवाह को अनंत ब्रह्माण्ड में!

जो सब छोड़ देता है, वह सब पा लेता है !

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