विज्ञान की निगाह में प्रकृति एक मशीन है जिसे पूरी तरीके से समझ लिया जाए तो इसको बहुत अच्छी तरीके से ऑपरेट किया जा सकता है परंतु आध्यात्मिक की निगाह में सृष्टि एक माया है ईश्वरी परिकल्पना का एक दृश्य मात्र है सभी कुछ ब्रह्म है परंतु अहंकार की वजह से हमें इसका भान नहीं होता हम ईश्वर से अपने आप को पृथक महसूस करते हैं परंतु वास्तव में हम ईश्वर के अंश है विज्ञान क्रम क्रमबद्ध तरीके से विकसित होते हुए गॉड पार्टिकल तक पहुंच गया है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा इमोशन पर आधारित रोबोट का भी निर्माण करने लगा सभी कुछ मानव के हाथ में आ गया है सृष्टि से सृष्टि करने वाला बन गया है ऐसा हो भी क्यों नहीं मनुष्य में भी तो परमात्मा का ही अंश है मनुष्य ही परमात्मा की सर्वोत्तम कृति है जिसके अंदर विवेक है और समझ है बाकी किसी के अंदर इस पृथ्वी पर मनुष्य इतना समझ नहीं है अन्य सभी चेतना अपने विकास के दौड़ में हैं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अपनी चेतना को ही परम चेतना से जोड़ देते हैं तो हमें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है मन के द्वारा मंत्र है मंत्र से फ्रीक्वेंसी है फ्रीक्वेंसी स्ट्रिंग है स्प्रिंग से ही से ही परमाणु का निर्माण हुआ है और परमाणुओं से ही पदार्थ बने जिससे हम और आप मंत्र साधना बहुत पहले भी हमारे आध्यात्मिक करते थे जिसका जिक्र रामायण और महाभारत में आज जो भी साइंस या विज्ञान में घटित हो रहा है हमारे वेद पुराणों में पहले से ही वर्णित है चाहे वह टाइम ट्रेवल की बात हो ब्रह्मास्त्र की बात हो विमान की बात हो इस भारतवर्ष में भी अनेक ऋषि महात्मा हुए हैं आज भी हैं जिनको अष्ट सिद्धियां प्राप्त है अनेक प्रकार के कार्य कर सकते हैं विज्ञान भी उन्हीं बातों को सिद्ध कर रहा प्रकृति का नियम ही परिवर्तन है प्रकृति में परिवर्तन होता रहता है इस प्रकार विज्ञान में अपनी जगह पर है और आध्यात्मिक चेतना अपनी जगह पर विज्ञान की कसौटी पर आध्यात्मिक इतना को तो लेंगे तो निश्चय ही आप सत्य साबित होंगे आध्यात्मिक चेतना ही सर्वोपरि है इसका जिक्र भगवान श्री कृष्ण ने गीता में किया है
#Science and spriculality
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