सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

शरीर से झड़े हुए डीएनए का जासूसी के लिए हो सकता है इस्तेमाल

 इंसान जहां भी जाते हैं उनका डीएनए उन स्थानों पर झड़ता रहता है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि डीएनए के इन झड़े हुए अंशों का इस्तेमाल लोगों या पूरे के पूरे नस्लीय समूह को ट्रैक करने के लिए किया जा सकता है.

सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि जानवर भी जहां जाते हैं वहां अपने डीएनए के अंश छोड़ जाते हैं. इसे पर्यावरणीय डीएनए या ईडीएनए कहा जाता है. हाल ही में विकसित की गई एक तकनीक ईडीएनए में से भारी मात्रा में जानकारी निकाल सकती है.

नेचर इकोलॉजी एंड एवोल्यूशन पत्रिका में छपे एक अध्ययन के लेखकों के मुताबिक यह नई तकनीक कई मेडिकल और वैज्ञानिक तरक्कियों की तरफ ले जा सकती है और यहां तक कि अपराधियों को ढूंढने में भी मदद कर सकती है. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह तकनीक सहमति, निजता और सर्विलांस से जुड़ी कई चिंताएं भी सामने लाती है.

अनजाने में हुई बड़ी खोज

इंसान जहां जहां जाते हैं वहां या तो उनकी चमड़ी या बालों की कोशिकाओं झड़ती हैं. इसके अलावा खांसी में मिली छोटी बूंदों से लेकर शौचालयों में फ्लश किए गए बेकार पानी तक में उनके डीएनए के अंश होते हैं.


डीएनए
विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

शरीर से झड़े हुए डीएनए का जासूसी के लिए हो सकता है इस्तेमाल

१७ मई २०२३

इंसान जहां भी जाते हैं उनका डीएनए उन स्थानों पर झड़ता रहता है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि डीएनए के इन झड़े हुए अंशों का इस्तेमाल लोगों या पूरे के पूरे नस्लीय समूह को ट्रैक करने के लिए किया जा सकता है.

https://p.dw.com/p/4RUyP

सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि जानवर भी जहां जाते हैं वहां अपने डीएनए के अंश छोड़ जाते हैं. इसे पर्यावरणीय डीएनए या ईडीएनए कहा जाता है. हाल ही में विकसित की गई एक तकनीक ईडीएनए में से भारी मात्रा में जानकारी निकाल सकती है.

नेचर इकोलॉजी एंड एवोल्यूशन पत्रिका में छपे एक अध्ययन के लेखकों के मुताबिक यह नई तकनीक कई मेडिकल और वैज्ञानिक तरक्कियों की तरफ ले जा सकती है और यहां तक कि अपराधियों को ढूंढने में भी मदद कर सकती है. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह तकनीक सहमति, निजता और सर्विलांस से जुड़ी कई चिंताएं भी सामने लाती है.

अनजाने में हुई बड़ी खोज

इंसान जहां जहां जाते हैं वहां या तो उनकी चमड़ी या बालों की कोशिकाओं झड़ती हैं. इसके अलावा खांसी में मिली छोटी बूंदों से लेकर शौचालयों में फ्लश किए गए बेकार पानी तक में उनके डीएनए के अंश होते हैं.

पद चिन्ह
समुद्र तट पर मौजूद पद चिन्हों से भी मिल सकता है डीएनएतस्वीर: tana/imago images

हाल के सालों में वैज्ञानिकों द्वारा वन्य जीवों के ईडीएनए को इकठ्ठा करना बढ़ गया है. ऐसा खतरों का सामना कर रही प्रजातियों की मदद करने की उम्मीद से किया गया.

लेकिन इस नए शोध के लिए, फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के व्हिटनी लेबोरेटरी फॉर मरीन बायोसाइंस में वैज्ञानिक लुप्तप्राय समुद्री कछुओं के ईडीएनए को इकठ्ठा करने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे थे.

लेकिन शोधकर्ताओं की इस अंतरराष्ट्रीय टीम ने अनजाने में भारी मात्रा में इंसानी ईडीएनए इकठ्ठा कर लिया, जिसे उन्होंने "ह्यूमन जेनेटिक बाइकैच" कहा. इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने वाले वन्यजीव रोग जीनोमिक प्रोफेसर डेविड डफी ने कहा कि इकठ्ठा किए गए इंसानी डीएनए की मात्रा और गुणवत्ता से "लगातार आश्चर्यचकित" रहे.

उन्होंने कहा, "अधिकांश मामलों में गुणवत्ता लगभग वैसी है जैसी की तब होती जब हमने सैंपल सीधा किसी व्यक्ति से लिया होता." वैज्ञानिकों ने सैंपल आस पास के समुद्र, नदियों और शहरों से और इंसानी बसावटों से दूर स्थित इलाकों से भी लिए.

हर जगह है डीएनए

जब उन्हें एक भी ऐसा सैंपल नहीं मिला जिसमें इंसानी ईडीएनए ना मिला हुआ हो तो वो फ्लोरिडा के एक ऐसे सुदूर द्वीप पर गए जहां लोगों का जाना प्रतिबंधित है. वहां मानव डीएनए नहीं था, लेकिन फिर टीम का एक सदस्य तट पर नंगे पांव चला. वैज्ञानिकों को फिर रेत में सिर्फ एक पद चिन्ह में से ईडीएनए मिला.

लाखों साल पहले की गई हत्याओं की जांच जारी

03:55

टीम को आयरलैंड में एक नदी के किनारे सिर्फ उसके उद्गम पर स्थित सुदूर एक पहाड़ी नाले के अलावा पूरे रास्ते मानव डीएनए मिला. टीम ने जानवरों के एक अस्पताल से हवा के सैंपल लिए. उसमें भी टीम को वहां के कर्मचारियों, उनके मरीज पशु और पशुओं में आमतौर पर पाए जाने वाले वायरसों का ईडीएनए मिला.

अध्ययन के लेखकों में से एक मार्क मैककौली ने बताया कि डीएनए सैंपलों की सिक्वेंसिंग कर टीम ने यहां तक पता लगा लिया कि किसी व्यक्ति को आटिज्म और मधुमेह जैसी बीमारियों के होने का ज्यादा खतरा है या नहीं.

मैककौली ने एक ऑनलाइन प्रेस वार्ता में बताया, "यह सारा बेहद निजी, पैतृक और स्वास्थ्य संबंधी डाटा वातावरण में मुक्त रूप से उपलब्ध है और वह ठीक इसी समय हमारे इर्द गिर्द हवा में तैर रहा है."

उन्होंने कहा, "हमने अपने सीक्वेंसों का विशेष रूप से इस तरीके से परीक्षण नहीं किया कि हम विशेष लोगों के बारे में जानकारी निकाल सकें, क्योंकि इसमें नैतिक मुद्दे हैं." लेकिन उन्होंने आगे कहा कि भविष्य में ऐसा "निश्चित रूप से" संभव हो सकेगा.

गंभीर चिंताएं

उन्होंने कहा, "सवाल यह है कि उस चरण तक पहुंचने में कितना समय लगेगा." शोधकर्ताओं ने मानव ईडीएनए इकठ्ठा करने के भावी लाभों पर जोर दिया, जैसे शौचालय से निकले पानी में कैंसर की म्युटेशन को ट्रैक करना, लंबे समय से छिपे पुरातात्विक स्थानों को खोजना या जिस कमरे में कोई जुर्म हुआ हो वहां मौजूद मुजरिम के डीएनए का इस्तेमाल कर उसका पता लगा लेना.

जंगलों में ट्रैकिंग के लिए डीएनए का इस्तेमाल

04:23

मेरीलैंड विश्वविद्यालय में कानून की प्रोफेसर नेटली राम का कहना है कि इन खोजों की वजह से "जेनेटिक निजता और पुलिसिंग की उचित सीमाओं को लेकर गंभीर चिंताएं उठनी चाहिए."

अध्ययन पर एक टिप्पणी में उन्होंने लिखा, "अनिच्छा से छोड़ी गई जेनेटिक जानकारी का अन्वेषण के उद्देश्यों के लिए काम लेने से हम सभी पर अनवरत जेनेटिक सर्विलांस का खतरा है." अध्ययन के लेखकों ने उनकी चिंताओं से सहमति व्यक्त की.

मैककौली ने चेतावनी दी कि बिना सहमारी के मानव डीएनए का इस्तेमाल करने से लोगों को ट्रैक किया जा सकेगा या "खतरों का सामना कर रहे समूहों या नस्लीय अल्पसंख्यकों" को निशाना बनाया जा सकेगा.

उनकी टीम ने एक बयान में कहा कि इसी वजह से उन्होंने खतरे की सूचना देने का निश्चय किया और नीति निर्माताओं और वैज्ञानिकों से कहा कि वो इस "नैतिक पहेली" को संबोधित करने वाली नियमों पर काम करना शुरू करें.

सीके/एए (एएफपी) sabhar https://www.dw.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पहला मेंढक जो अंडे नहीं बच्चे देता है

वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके...

क्या है आदि शंकर द्वारा लिखित ''सौंदर्य लहरी''की महिमा

?     ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥  अर्थ :'' हे! परमेश्वर ,हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों  (गुरू और शिष्य) को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें''।      ''सौंदर्य लहरी''की महिमा   ;- 17 FACTS;- 1-सौंदर्य लहरी (संस्कृत: सौन्दरयलहरी) जिसका अर्थ है “सौंदर्य की लहरें” ऋषि आदि शंकर द्वारा लिखित संस्कृत में एक प्रसिद्ध साहित्यिक कृति है। कुछ लोगों का मानना है कि पहला भाग “आनंद लहरी” मेरु पर्वत पर स्वयं गणेश (या पुष्पदंत द्वारा) द्वारा उकेरा गया था। शंकर के शिक्षक गोविंद भगवदपाद के शिक्षक ऋषि गौड़पाद ने पुष्पदंत के लेखन को याद किया जिसे आदि शंकराचार्य तक ले जाया गया था। इसके एक सौ तीन श्लोक (छंद) शिव की पत्नी देवी पार्वती / दक्षिणायनी की सुंदरता, कृपा और उदारता की प्रशंसा करते हैं।सौन्दर्यलहरी/शाब्दिक अर्थ...

स्त्री-पुरुष क्यों दूसरे स्त्री-पुरुषों के प्रति आकर्षित हैं आजकल

 [[[नमःशिवाय]]]              श्री गुरूवे नम:                                                                              #प्राण_ओर_आकर्षण  स्त्री-पुरुष क्यों दूसरे स्त्री-पुरुषों के प्रति आकर्षित हैं आजकल इसका कारण है--अपान प्राण। जो एक से संतुष्ट नहीं हो सकता, वह कभी संतुष्ट नहीं होता। उसका जीवन एक मृग- तृष्णा है। इसलिए भारतीय योग में ब्रह्मचर्य आश्रम का यही उद्देश्य रहा है कि 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करे। इसका अर्थ यह नहीं कि पुरष नारी की ओर देखे भी नहीं। ऐसा नहीं था --प्राचीन काल में गुरु अपने शिष्य को अभ्यास कराता था जिसमें अपान प्राण और कूर्म प्राण को साधा जा सके और आगे का गृहस्थ जीवन सफल रहे--यही इसका गूढ़ रहस्य था।प्राचीन काल में चार आश्रमों का बड़ा ही महत्व था। इसके पीछे गंभीर आशय था। जीवन को संतुलित कर स्वस्थ रहकर अपने कर्म को पूर्ण करना ...