मृत्यु और जीवन

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मृत्यु इस पृथ्वी की सबसे बडी माया है इसे भ्रम भी कह सकते है ,और इसी कारण इस लोक को मृत्युलोक भी कहते है । विज्ञान कहता है  कि #क्रोमोजोम्स की मृत्यु ही मनुष्य की मृत्यु है । ये क्रोमोजोम्स एक निश्चित अवधि तक ही सक्रिय रहते है । परन्तु अध्यात्म कहता है कि मनुष्य एक भौतिक ईकाई मात्र नही है ।बल्कि एक अभौतिक पदार्थ है जो मृत्यु के समय शरीर से मिलकर शुन्य मे चला जाता है, एवं समय पाकर पुनः नया शरीर ग्रहण करता है । kक्रोमोजोम्स भी उसी चेतना शक्ति जीवित एवं मृत होते है।
अभी मैने विडियो पर एक संत को यह कहते सुना था कि मृतक को चौदह दिनो तक आराम से मरने दिजिये ।क्या ये लोग ज्ञान बांट रहे है या हलवा बना रहे है आराम से मरो ओर चौदह दिन मरो हमारे यहां मृतक का दाह संस्कार कुछ घण्टे मै हो जाता है चौदह दिन मे तो मृतक मे कीड़े पड जायेगे , यह उन लोगों के ज्ञान की पराकाष्ठा है ,और उनके अनुयायी के तो क्या कहने।
 वास्तव मे सच क्या है सोने से पुर्व जिस प्रकार स्वप्न की छाया पडने लगती है । उसी प्रकार मृत्यु के छ: महिने पुर्व   उसकी छाया पडने लगती है, उस समय जागरूक व्यक्ति मृत्यु की भविष्यवाणी कर सकता है । oपांच छ: घण्टे पहले या एक दो दिन पहले तो इसके स्पष्ट संकेत दिखाई देने लगते है ।जिससे कई व्यक्ति अपनी मृत्यु की पूर्व सुचना दे देते है। जो नित्य सोते या उठते समय प्रार्थना का प्रयोग करते है, या ध्यान करते है, उन्हें भी अपने मृत्यु के समय का पता चल जाता है । निर्मल चित्त वालों को भी यह पता चल जाता है ।
आत्मा से निकलने पर भी शरीर की ऊर्जा तीन दिन तक उसमे से निकलती रहती है ।जैसे वृक्ष काटने पर भी उसे सुखने मे कई दिन लग जाते है  ह्रदय की धड़कन बन्द होने पर डाक्टर लोग  hमनुष्य को मृत घोषित कर देते है जिससे क्लीनिकलडैथ (शारीरिक मृत्यु) कहा जाता है, किन्तु जब शरीर की सम्पूर्ण ऊर्जा बाहर निकल जाती है तो उसे बायोलोजिकल डेथ ( जैविक मृत्यु )कहा जाता है।
इसमे लगभग तीन दिन लग जाते है। जैविक मृत्यु से पूर्व यदि विशेष विधियों द्वारा आत्मा को शरीर मे पुनः प्रवेश कराया जा सके तो वह पुनः जीवित हो सकता है ,जैसे पौधा जमीन से उखाड देने पर भी थोडे समय बाद पुनः लगाने पर जीवित हो जाता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि जीवात्मा शरीर को छोड देती है, किन्तु शरीर यदि बेकार नही हुआ तो अन्य कोई आत्मा प्रवेश कर जाती है । sजिससे वह मृत शरीर पुनः जीवित हो उठता है ।
कोई जीव जब मृत्यु को प्राप्त करता है तो उसकी चेतना के कारण आत्मा वातावरण मे चली जाती है और वह अपने अनुरूप प्रवृत्ति वाले ऊर्जा शरीर मे कुर्म की पुछ से सम्पर्क करके वहाँ अवतरित हो जाती है।
इस समय आत्मा बीजरूप परमबिन्दू  होती है । उसमे केवल कर्मों के संस्कार होते है, उसका कोई प्रकट अस्तित्व किसी भी रूप मे नही होता ।संस्कार जहां एकत्रित होता है , वह विरल तत्त्व बिन्दू है यही जीवात्मा है। वह सुक्ष्मत्म होता है तो वहां कुछ नही होता ।प्रत्यक्ष भौतिक जगत का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है ।उससे आगे कुछ नही है क्योकि जो नही है वह वास्तव मे है ।
किन्तु वह भौतिक तत्त्व नही है उसकी कोई आकृति कोई स्वरूप नही है वह एक भौतिक तत्त्वों से शुन्य बिन्दू मात्र है। वहा केवल संस्कार हैa और यह संस्कार ही फिर से शरीर धारण करता है ,जब संस्कार ही शुन्य हो जाते है फिर पुनर्जन्म नही हो सकता है

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