ऐपल के नवीनतन आईफ़ोन 5एस का फ़िंगरप्रिंट सेंसर क्या इस बात का संकेत है कि पासवर्ड का वक़्त ख़त्म हो रहा है?
नए टच आईडी फ़ीचर से यूज़र अपने फ़ोन को सिर्फ़ छूकर खोल पाएगा और उसे मुश्किल पासवर्ड याद करने के झंझट की ज़रूरत नहीं रहेगी.
स्कॉटलैंड यार्ड तो 1901 से ही फ़िंगरप्रिंट का इस्तेमाल कर रही है.हालांकि शरीर की विशेषताओं से आदमी की पहचान करने वाली बायोमैट्रिक्स तकनीक कुछ समय से चलन में है.
इसके अलावा व्यापारिक क्षेत्रों में निजी कंप्यूटरों में बड़े पैमाने पर फ़िंगरप्रिंट सेंसर्स का इस्तेमाल किया जा रहा है.
तकनीक की दिक्कतें
हालांकि क्लिक करेंस्मार्टफ़ोन, जैसे कि मोटोरोला एट्रिक्स 4जी में, किए गए प्रयोगों में कुछ दिक्कत आ गई और अंततः इसे छोड़ देना पड़ा.
लेकिन न्यूज़ वेबसाइट प्लेनेट बायोमैट्रिक्स के मैनेजिंग एडिटर मार्क लॉकी को उम्मीद है कि यह आने वाले वक़्त की आहट है.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "यह उद्योग लंबे वक्त से ऐसे ही क्षण का इंतज़ार कर रहा था."
"उद्योग लंबे वक्त से ऐसे ही क्षण का इंतज़ार कर रहा था"
मार्क लॉकी, मैनेजिंग एडिटर, प्लैनेट बायोमैट्रिक्स
क्लिक करेंऐपल का बायोमैट्रिक तकनीक का इस्तेमाल करने का इरादा तभी स्पष्ट हो गया था जब जुलाई 2012 में उसने क्लिक करेंमोबाइल सिक्योरिटी कंपनी ऑथेन्टेक को ख़रीदा था. इसी कपंनी ने फिंगरप्रिंट सेंसर चिप बनाई थी.
साउथंपटन विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर मार्क निक्सन कहते हैं, "हम यकीनन पासवर्ड से आगे निकल रहे हैं."
वह साइबर सिक्योरिटी सिस्टम पर काम करते हैं जो इंसान के चेहरे और चाल जैसी ख़ासियतों से उसकी पहचान करता है.
वह भी कहते हैं कि हालांकि बायोमैट्रिक्स सिस्टम सुविधाजनक हैं लेकिन उपकरण की सुरक्षा के लिए यह रामबाण नहीं हैं.
इसे अपनाने की सोच रही कंपनियों को उपकरण के फ़िंगरप्रिंट को पहचानने में असफल रहने और अपने मालिक के लिए ही खुद को लॉक करने की क्लिक करेंआशंका को ध्यान में रखना होगा.
लॉकी कहते हैं, "यह सबसे ख़राब स्थिति होगी. लोग उस चीज़ को दो हफ़्ते में ही फेंक देंगे."
ठंडा मौसम, कांपती उंगलियां और मामूली कटने के निशान से भी फ़िंगरप्रिंट रीडर को सही आदमी की पहचान में दिक्कत आ सकती है.
इस दिक्कत से बचने के लिए एप्पल "सब-एपिडर्मल स्किन लेयर्स" को स्कैन करने पर विचार कर रही है. इसका मतलब हुआ कि यह स्कैनिंग ऊपरी त्वचा के बजाय बहुत विस्तृत स्तर पर होगी.
लेकिन इस तकनीक के साथ कुछ और दिक्कतें भी आ सकती हैं.
बहु-रूपी बायोमैट्रिक्स
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के कंप्यूटर साइंस विभाग के डॉक्टर एंड्रयू मार्टिन कहते हैं, "फ़िंगरप्रिंट रीडर निस्संदेह बहुत सुरक्षित नहीं होते हैं."
इससे पहले भी नकल के उस्ताद फ़िंगरप्रिंट की नकल तैयार करने में सफल रहे हैं.
इसके अलावा निजता का मसला भी है.
बायोमैट्रिक डाटा सामान्यतः उपकरण के लोकल प्रोसेसर में इंक्रिप्ट और स्टोर किया जाता है.
लेकिन यह तरीका किसी भी ढंग से पूरी तरह सुरक्षित नहीं है. ख़ासतौर पर तब, जब ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करने के लिए डेटा का इस्तेमाल किया जा रहा हो.
और अब जबकि एडवर्ड स्नोडेन बता चुके हैं कि एनएसए और जीसीएचक्यू जैसी सरकारी एजेंसियां हमारी ऑनलाइन क्रियाकलापों पर नज़र रख रही हैं- बहुत से लोग अपने शरीर की जानकारी को डिजिटल फ़ॉर्म में नहीं रखना चाहेंगे.
हालांकि इन सभी कमियों के बावजूद दुनिया भर की टेक्नोलॉजी कंपनियां ऑनलाइन ख़रीदारी के लिए बायोमैट्रिक्स सिक्योरिटी को स्टैंडर्ड बनाने के लिए लामबंद हो रही हैं.
द फ़िडो (फ़ास्ट आइडेंटिटी ऑनलाइन) गठबंधन- जिसमें ब्लैकबेरी, गूगल और ऐपल शामिल हैं- 'यूज़र की पहचान के लिए पासवर्ड पर निर्भरता कम करने के लिए' प्रयास कर रहा है.
"दरअसल आपको मामले को बड़े फ़लक पर देखना होगा और यह सवाल पूछना होगा कि आप किससे सुरक्षा कर रहे हैं"
डॉक्टर एंड्रयू मार्टिन
यह बायोमैट्रिक्स का इस्तेमाल कर प्रयोग में आसान और पहचान योग्य सिस्टम की वकालत करता है- जिससे लॉगिन ही नहीं बड़े निर्णय भी लिए जा सकेंगे- जैसे कि 'मेरी सभी ईमेल डिलीट कर दो.'
लेकिन बायोमैट्रिक्स सिस्टम की सहूलियत इसके संभावित सुरक्षा ख़तरों पर भारी पड़ सकती है- कम से कम एक सामान्य यूज़र के लिए.
डॉक्टर मार्टिन कहते हैं, "दरअसल आपको मामले को बड़े फ़लक पर देखना होगा और यह सवाल पूछना होगा कि आप किससे सुरक्षा कर रहे हैं."
एक संभावना "बहु-रूपी बायोमैट्रिक्स" हो सकती है. एक ऐसा सिस्टम जो एक के बाद एक कई अलग तरह की तकनीक इस्तेमाल करता है. जैसे कि- आइरिस रीडर, वॉयस रिकग्निशन और फ़िंगरप्रिंट टेक्नोलॉजी.
उम्मीद
गूगल के कई एंड्रॉएड उपकरणों में फेशियल रिकग्निशन (चेहरे को पहचानने वाली) तकनीक है.
लॉगिंग को आसान करने में तो यह तकनीक सामान्यतः सफल रही है लेकिन फ़ोटो या वीडियो से इसे छकाया जा सकता है.
एक दूसरे प्रयोग में टेक्नोलॉजी कंपनी बायोनिस आपकी नब्ज़ को मापने के लिए एक रिस्टबैंड (कलाई के पट्टे) का इस्तेमाल करती है. कंपनी का कहना है कि हर आदमी की नब्ज़ अलग होती है.
इसी तरह की और भी तकनीकें अभी राह में हैं.
साइबर सिक्योरटी सिस्टम्स तीन पहचानों पर केंद्रित हैं. ऐसी कोई चीज़ जो आप जानते हों- जैसे कि आपकी मां का नाम, ऐसी कोई चीज़ जो आपके पास हो- जैसे कि कोई एक्सेस कोड या टोकन और ऐसा कुछ जो आप में है- जैसे कि फ़िंगरप्रिंट.
जीपीएस वाले स्मार्टफ़ोन आपको एक और चीज़ जोड़ने की सुविधा देते हैं, "वह जगह जहां आप हैं."
इससे स्मार्टफ़ोन अपने सामान्य ठिकाने से कई मील जाने पर लॉगिन करने से इनकार कर देता है.
हालांकि मार्क लॉकी बायोमैट्रिक्स को लेकर आशावादी हैं. वह कहते हैं, "मोबाइल की दुनिया में जहां आधारभूत सरंचना काफ़ी विकसित है, बायोमैट्रिक्स के अंततः पासवर्ड की जगह आ जाने की गुंजाइश बहुत ज़्यादा है."
sabhar :http://www.bbc.co.uk
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