पिछले कई दशकों से संसार खाद्य-पदार्थों की कमी को लेकर चिंतित है| कृषि-उत्पादन में ऐसी “आनुवंशिक-संशोधित” किस्मों के, जिन पर किसी तरह के हानिकारक कीटों और रोगों का कोई प्रभाव नहीं पडता, उपयोग को लेकर बहुत वाद-विवाद होता रहा है| अब हवा के एक नया रुख चला है| एफ.ए.ओ. के विशेषज्ञों का कहना है कि प्रोटीन का पृथ्वी पर एक प्रचुर स्रोत है जिसकी ओर लोगों ने ध्यान नहीं दिया है – ये हैं कीट-पतंगे| इनका पालन कृषि की एक प्रमुख शाखा बन सकता है| आज तो ऐसी बातें कपोल-कल्पना ही लगती हैं, किंतु ये जीवन का यथार्थ बन सकती हैं, रूसी आयुर्विज्ञान अकादमी के आहार संस्थान के डायरेक्टर विक्टर तुतेल्यान कहते हैं:
“हमें सदा आहार के नए स्रोतों की, नई टेक्नोलोजी की खोज करते रहना चाहिए| आहार की समस्या विकासशील देशों की ही नहीं, सारी मानवजाति की समस्या है| इस समस्या का एक संभव हल है – मनुष्य के आहार में कीट-पतंगों का उपयोग| उनसे भी वही प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट मिलते हैं| एक जैविक प्रजाति के नाते मनुष्य के लिए इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि उसे ये पौष्टिक पदार्थ कहाँ से मिलते हैं| अभी तीस साल पहले तक रूस में किसी ने सीप-मांस चखा तक नहीं था, जो फ्रांस में एक लज़ीज़ चीज़ मानी जाती है| और अब यह रूस में काफी लोकप्रिय है|”
विक्टर तुतेल्यान के मत में न केवल पूर्वी एशिया में बल्कि संसार के दूसरे भागों में भी कीट-पतंगों से बना भोजन प्रचलित हो सकता है|
“खाद्य-पदार्थ के, आहार के स्रोत के नाते कीट-पतंगे इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं? एक तो उनकी गिनती बड़ी तेज़ी से बढती है| दूसरे आधुनिक औद्योगिक विधियों से उन्हें बिना किसी स्वाद वाले “गूदे” में बदला जा सकता है और फिर उन्हें ऐसा रूप-रंग दिया जा सकता है जिससे खानेवाले को लगेगा कि वह सामान्य सामिष या मत्स्य भोजन खा रहा है|”
वैसे कुछ विशेषज्ञों का यह मानना है कि कुछ प्रकार के कीटों को बड़े पैमाने पर पालने का काम तो अभी से शुरू कर देना चाहिए| जीवविज्ञानी अलेक्सेई शिपीलोव का कहना है कि बड़े पैमाने पर मधुमक्खियों को पालना बहुत ज़रूरी है:
“एक सिद्धांत यह भी है कि जिस दिन धरती पर मधुमक्खियां नहीं रहेंगी, समझ लेना उसके तीन-चार साल बाद मानव का भी अस्तित्व नहीं रहेगा| क्योंकि पृथ्वी पर कुछ भी पैदा नहीं होगा| आजकल सारी दुनिया में मधुमक्खियों की गिनती तेज़ी से घट रही है| इसका एक कारण मोबाइल फोनों का प्रचलन बढ़ना बताया जा रहा है| बात यह है कि मधुमक्खियां पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवों की मदद से अपने छत्तों तक लौटने का रास्ता ढूँढती हैं| मोबाईल फोनों से चुम्बकीय विकिरण होता है जिसके कारण वे अपने घर का रास्ता नहीं खोज पाती हैं और मारी जाती हैं\”
अनेक कीटों में प्रोटीन और लाभदायक वसाओं की मात्रा काफी अधिक होती है साथ ही विभिन्न खनिज पदार्थों, जैसे कि कैल्शियम, लौह, जिंक आदि की भी| एफ.ए.ओ. के विशेषज्ञों का कहना है कि मांस में जहां सौ ग्राम सूखे वज़न के पीछे लौह की मात्रा 6 मिलीग्राम होती है, वहीं टिड्डी में 8 से 20 मिलीग्राम तक| ऐसा अनुपात उस सामिष आहार के पक्ष में नहीं है जिसका मनुष्य आदी है| कौन जाने पारंपरिक पालतू जानवरों के सामिष भोजन का स्थान कीट-पतंगों से बना सामिष भोजन ले ले| sabhar :http://hindi.ruvr.ru
और पढ़ें: http://hindi.ruvr.ru/2013_05_19/jiinaa-sarvabhakshi-banna/
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