सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ब्रह्म साक्षात्कार

🕉🌞🌞🌞🌞🚩🌞🌞🌞🌞🕉
             ⚜🚩⚜
❓ ब्रह्म साक्षात्कार का वास्तविक अर्थ क्या है ? हम कैसे जानेंगे कि हमने ब्रह्म साक्षात्कार कर लिया है?
            🕉⚜🕉

ॐ जब साधक साधना करते हुए प्राण वायु पर नियंत्रण स्थापित कर लेता है और प्राण का प्रवाह सुषुम्ना मार्ग के अवरोधों को पार करते हुए आज्ञा चक्र को पार कर  नाद ध्वनि का साक्षात्कार कर लेता है , तब उसे मानना चाहिए कि वह ब्रह्म के क्रियात्मक अस्तित्व को जानने लगा है ।उसकी क्रिया शक्ति को उसने अपने ही शरीर में महसूस कर लिया है । यह नाद 10 प्रकार का होता है । इसमें सबसे उच्च स्तरीय नाद ओंकार की ध्वनि के समान है ।यह नाद ही है जो संपूर्ण ब्रह्मांड को गतिमान किए हुए है और हमारे संपूर्ण शरीर की क्रियाओं को संचालित करने का मुख्य कारण यह नाद ब्रह्म ही है । यदि इस संपूर्ण  ब्रह्मांड के सृजन एवं क्रिया का कारण खोजा जाए तो यह नाद ही इसका एकमात्र कारण है । हमारे शरीर में यह नाद ही कारण शरीर का प्रतिनिधित्व करता है । इसे हम ईश्वर भी कह सकते हैं जो त्रिगुणात्मक प्रकृति को नियंत्रित एवं संचालित करता है । इसी के द्वारा त्रिगुणात्मक प्रकृति का संचालन हो रहा है।जब साधक नाद ब्रह्म का साक्षात्कार करता है तो प्रारंभ में यह नाद अत्यंत धीमा होता है  किंतु बाद में यह बहुत तीव्र होता जाता है उच्च स्तरीय तीव्रता को प्राप्त होने के बाद जैसे-जैसे साधक अपनी साधना को आगे बढ़ाते जाता है ,वैसे वैसे यह नाद  क्रमश  धीरे-धीरे धीमा होता चला जाता है और यही नाद प्रकाश तत्व में बदलता जाता है । धीरे-धीरे साधक का आज्ञा चक्र पूर्ण प्रकाशित हो जाता है और ऐसी स्थिति में उसे अमृत के स्राव का आनंद भी प्राप्त होने लगता है । इससे आगे जैसे-जैसे साधक की साधना आगे बढ़ती है। आज्ञा चक्र से प्रकाश तत्व का विस्तार सहस्रार चक्र की ओर होने लगता है । सहस्रार चक्र में प्रकाश तत्व का विस्तार पूर्ण व्यापक होने लगता है । संपूर्ण सहस्रार चक्र प्रकाशित होता जाता है और सहस्रार चक्र से असीम आनंददायी लहरें उठने लगती हैं । इस स्थिति में अमृत का स्राव अत्यधिक बढ़ जाता है । इससे संपूर्ण शरीर आनंद की आगोश से भर जाता है । जब संपूर्ण शरीर में यह आनंद दोड़ने लगता है और  साधक घंटों इस आनंद में डूबा रहता है ,तभी सहस्रार चक्र से एकाएक हृदय चक्र में असीम तेजोमयी श्वेत शीतल  प्रकाश उत्पन्न होता है ।एक श्वेत शीतल आनंददायी प्रकाश जिसे प्राप्त करके साधक पूर्ण आत्म विभोर हो जाता है । इसे प्राप्त करके साधक अपनी पूर्णता का अहसास करता है। साधक अपने भीतर एवं बाहर संपूर्ण सृष्टि में एक ही आत्म तत्व का विस्तार प्रकाशित होता हुआ देखता है। यही है -"परब्रह्म  के वास्तविक स्वरूप का साक्षात्कार "। यदि कोई साधक यहां तक पहुंच पाता है और संसार की इस महानतम उपलब्धि को प्राप्त करता है  तो उसे मान लेना चाहिए कि उसने ब्रह्म की क्रिया शक्ति के साथ अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप अर्थात ब्रह्म स्वरूप का साक्षात्कार कर लिया है ।उसकी आत्मा ने अपने ब्रह्म स्वरूप को बुद्धि के समक्ष प्रकट कर दिया है। यह किसी भी  उच्च स्तरीय योगी साधक के द्वारा ब्रह्म के स्वरूप को व्यक्त करने की अंतिम शब्द सीमा है। इससे आगे  कोई भी महानतम साधक  एक भी शब्द  अभिव्यक्त नहीं कर सकता  क्योंकि अब अभिव्यक्त करने जैसा कुछ भी नहीं है ।इससे आगे बढ़ने पर साधक निर्विचार, निर्विकल्प समाधि की ओर गति करता है। जहां पर मन ,बुद्धि ,अहंकार आदि क्रियाहीन हो जाते हैं । मन के क्रिया हीन होने से समस्त इंद्रियां अपने अपने कार्य करना बंद कर देती है ।जिससे इनके समस्त कार्य अवरुद्ध हो जाते हैं ।निर्विचार ,निर्विकल्प या असंप्रज्ञात समाधि में स्थित हो जाना ब्रह्म में पूर्ण स्थिति को प्राप्त कर लेना है । जहां पर सिर्फ और सिर्फ उस ब्रह्म के सिवा कुछ भी शेष नहीं रहता । इस स्थिति में स्थित होने वाला साधक  माया के संपूर्ण आवरण को हमेशा हमेशा के लिए मिटा देता है और पूर्ण ब्रह्म परमात्मा में लीन होकर  मुक्त हो जाता है -हमेशा हमेशा के लिए।
                      -- रामेश्वर हिंदू
      ⚜🚩 सत्यमेव जयते 🚩⚜
🌞 अखिल विश्व गायत्री परिवार अकलेरा
     ⚜🚩 जय मां आदिशक्ति 🚩⚜

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

vigyan ke naye samachar ke liye dekhe

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

क्या है आदि शंकर द्वारा लिखित ''सौंदर्य लहरी''की महिमा

?     ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥  अर्थ :'' हे! परमेश्वर ,हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों  (गुरू और शिष्य) को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें''।      ''सौंदर्य लहरी''की महिमा   ;- 17 FACTS;- 1-सौंदर्य लहरी (संस्कृत: सौन्दरयलहरी) जिसका अर्थ है “सौंदर्य की लहरें” ऋषि आदि शंकर द्वारा लिखित संस्कृत में एक प्रसिद्ध साहित्यिक कृति है। कुछ लोगों का मानना है कि पहला भाग “आनंद लहरी” मेरु पर्वत पर स्वयं गणेश (या पुष्पदंत द्वारा) द्वारा उकेरा गया था। शंकर के शिक्षक गोविंद भगवदपाद के शिक्षक ऋषि गौड़पाद ने पुष्पदंत के लेखन को याद किया जिसे आदि शंकराचार्य तक ले जाया गया था। इसके एक सौ तीन श्लोक (छंद) शिव की पत्नी देवी पार्वती / दक्षिणायनी की सुंदरता, कृपा और उदारता की प्रशंसा करते हैं।सौन्दर्यलहरी/शाब्दिक अर्थ सौन्दर्य का

क्या हैआदि शंकराचार्य कृत दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम्( Dakshinamurti Stotram) का महत्व

? 1-दक्षिणामूर्ति स्तोत्र ;- 02 FACTS;- दक्षिणा मूर्ति स्तोत्र मुख्य रूप से गुरु की वंदना है। श्रीदक्षिणा मूर्ति परमात्मस्वरूप शंकर जी हैं जो ऋषि मुनियों को उपदेश देने के लिए कैलाश पर्वत पर दक्षिणाभिमुख होकर विराजमान हैं। वहीं से चलती हुई वेदांत ज्ञान की परम्परा आज तक चली आ रही  हैं।व्यास, शुक्र, गौड़पाद, शंकर, सुरेश्वर आदि परम पूजनीय गुरुगण उसी परम्परा की कड़ी हैं। उनकी वंदना में यह स्त्रोत समर्पित है।भगवान् शिव को गुरु स्वरुप में दक्षिणामूर्ति  कहा गया है, दक्षिणामूर्ति ( Dakshinamurti ) अर्थात दक्षिण की ओर मुख किये हुए शिव इस रूप में योग, संगीत और तर्क का ज्ञान प्रदान करते हैं और शास्त्रों की व्याख्या करते हैं। कुछ शास्त्रों के अनुसार, यदि किसी साधक को गुरु की प्राप्ति न हो, तो वह भगवान् दक्षिणामूर्ति को अपना गुरु मान सकता है, कुछ समय बाद उसके योग्य होने पर उसे आत्मज्ञानी गुरु की प्राप्ति होती है।  2-गुरुवार (बृहस्पतिवार) का दिन किसी भी प्रकार के शैक्षिक आरम्भ के लिए शुभ होता है, इस दिन सर्वप्रथम भगवान् दक्षिणामूर्ति की वंदना करना चाहिए।दक्षिणामूर्ति हिंदू भगवान शिव का एक

पहला मेंढक जो अंडे नहीं बच्चे देता है

वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके