मंत्र साधना से अन्दर की सोई हुई चेतना को जागृत किया जा सकता है।आन्तरिक शक्ति का विकास करके महान बना जा सकता है। मंत्र के जाप से मन की चंचलता नष्ट हो जाती है। जीवन संयमित बनता है ,स्मरण शक्ति में वृद्घि होती है और एकाग्रता प्राप्त होती है।
मनन करने पर जो रक्षा करे उसे मंत्र कहते हैं। एक प्रकार से विशेष शब्दों का समूह जप करने पर मन को एकाग्र करके अभिष्ट फल की प्राप्ति कराएं उसे मंत्र कहते हैं। वास्तव में,साधक दो प्रकार की यात्राएं कर सकता है। एक यात्रा है शक्ति की और दूसरी यात्रा है शांति की।
शक्ति की यात्रा सत्य की यात्रा नहीं है, शक्ति की यात्रा तो अहंकार की ही यात्रा है। फिर शक्ति चाहे धन से मिलती हो, पद से मिलती हो या मंत्र से। तुम शक्ति चाहते हो, तो सत्य नहीं चाहते हो। तुम्हारे द्वारा अर्जित की गई शक्ति शरीर की हो, मन की हो, या तथाकथित अध्यात्म की हो।
तुम्हें मजबूत करेगी। तुम जितने मजबूत हो, परमात्मा से उतने ही दूर हो। तुम्हारी शक्ति परमात्मा के समक्ष तुम्हारे अहंकार की घोषणा है। तुम्हारी शक्ति ही तुम्हारे लिए बाधा बनेगी। तुम्हारी शक्ति ही, वास्तविक अर्थों में, परमात्मा के समक्ष तुम्हारी निर्बलता है।
तो जितने तुम अपनी आंखों में शक्तिशाली बनोगे , उतने ही परमात्मा के द्वार पर निर्बल होते जाओगे। इसलिए शक्ति की खोज वास्तविक साधक की खोज नहीं। लेकिन साधक उस दिशा में ही जाता है। क्योंकि हम जो संसार में खोजते हैं, वही हम परमात्मा में भी खोजते हैं।
जो हमें यहां नहीं मिला, उसे ही हम वहां पा लेना चाहते हैं। तो हमारे संसार और हमारे मोक्ष में एक कंटिन्युटी है। जिसे बाजार में खोजा और वह नहीं मिला, तो उसे हम मंदिर में खोजते हैं। लेकिन खोज वही है। खोज करने वाला जरा भी बदला नहीं है।
एक जगह असफल हुए, तो दूसरी जगह सफलता की आकांक्षा जमा लेते हैं। लेकिन तुम शक्तिशाली होना चाहते हो, यही तुम्हारा दुख है। तुम मिटोगे तो आनन्द घटेगा, तुम्हारी अनुपस्थिति में अमृत की वर्षा होगी , तुम्हारे रहते यह होने वाला नहीं है। मंत्र शक्तिदायी है।
तो मंत्र से निश्चित शक्ति मिलती है। वास्तव में, मंत्र मन को एकाग्र करता है। तुम्हारी सारी बिखरी हुई मन की किरणें इकट्ठी हो जाती हैं। फिर वह मंत्र कोई भी हो ..राम का नाम हो, नमोकार हो, ऊँ मणि पद्मो हुम् हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
तुम अपना खुद का मंत्र बना ले सकते हो। मंत्र में आये शब्दों का भी कोई अर्थ नहीं है। मंत्र का प्रयोजन न शब्दों से है, न अर्थ से। मंत्र का प्रयोजन मन को एकाग्र करने से है। जब तुम मंत्र की रटन करते हो, तब तुम्हारे सारे विचारों की शक्ति विचारों से हटकर मंत्र में प्रवाहित होने लगती है।
चित्त में मंत्र ही रह जाता है। और भीतर तुम्हारे जितने ऊर्जा के द्वार हैं, उनके बहाव की ओर कोई दिशा नहीं बचती। जब तुम विचार करते हो, तो तुम्हारी शक्ति अनंत-अनंत धाराओं में बह रही है। एक विचार पश्चिम जा रहा है, एक पूरब जा रहा है, एक दक्षिण जा रहा है, एक उत्तर जा रहा है।
तुम बहुत तरफ बह रहे हो । इकट्ठे नहीं हो, बंटे हो, विभाजित हो। जब तुम मंत्र का जाप कर रहे हो, तब सारी ऊर्जा एक दिशा में प्रवाहित होने लगती है। जैसे हम सूरज की किरणों को एक कांच के लेंस से इकट्ठा कर लें, तो आग पैदा हो जाती है।
सूरज की किरणों में आग तो छिपी है, लेकिन पृथक-पृथक ज्यादा से ज्यादा गर्मी पैदा होगी। इकट्ठी हो जाएं, तो आग पैदा हो जाती है। ऐसे ही तुम्हारे मन में भी बड़ी आग छिपी है, अलग-अलग सिर्फ उष्णता रहती है। मंत्र उन्हें इकट्ठा करने का उपाय है। इकट्ठे होते से ही बड़ी गर्मी, ऊर्जा पैदा होती है।
और अगर तुम सतत मंत्र का प्रयोग करते रहो, तो तुम्हारे जीवन में अनेक शक्ति की घटनाएँ घटनी शुरू हो जाएंगी, जो तुम्हारे अहंकार को बड़ा सुख देंगी। तुम जो कहोगे, वह सच होने लगेगा; तुम जो बोल दोगे, वैसा हो जाएगा; तुम अभिशाप दे दोगे, तो फलित हो जाएगा।
तुम वरदान दे दोगे, तो पूरा हो जाएगा। क्योंकि तुम्हारी ऊर्जा इतनी इकट्ठी हो गई है कि तुम्हारे शब्द अब सार्थक होने लगेंगे। उनकी सार्थकता का कारण यही है कि जब कोई व्यक्ति इकट्ठी ऊर्जा से कुछ कहता है, तो वह दूसरे के अचेतन तक प्रवेश कर जाता है।
उसका तीर सीधा दूसरे के हृदय में चला जाता है। और दूसरे के हृदय में कोई भी बात पहुंच जाए, तो उसके परिणाम शुरू हो जाते हैं। अगर तुमने किसी व्यक्ति को कह दिया कल सुबह तुम बीमार पड़ जाओगे और तुम्हारा पूरा चित्त इसमें प्रवाहित हुआ हो।
तो तत्क्षण तुमने दूसरे के हृदय को घाव से भर दिया। इस कहते क्षण में, कोई दूसरा विचार विघ्न-बाधा डालने को नहीं, बस यही तुम्हारा मनोकार मंत्र रहा हो कि कल सुबह तुम बीमार पड़ जाओगे । अब यह व्यक्ति रात भर सो न सकेगा। इसने तुम्हारी आंखें देखीं, तुम्हारा वक्तव्य सुना।
तुम्हारा ढंग देखा और इसके मन पर यह गहरी छाप पड़ गई कि तुमने जो कहा है, उससे बचना मुश्किल है। इसका मन भी अब इसी मंत्र के आस पास घूमेगा। यह रात सपने में भी तुम्हें देखेगा, सपने में भी इसे यही वचन सुनाई पड़ेगा। यह कई बार मन में कहेगा, इससे कुछ होने वाला नहीं।
डरो मत, भय मत करो। लेकिन भीतर से कोई इसे फिर भी भयभीत किए जाएगा। चाहे व कहे कि डरो मत, चाहे यह डरे, दोनों हालात में यह तुम्हारे मंत्र को दोहरा रहा है । सुबह होते-होते यह बीमार पड़ जाएगा। यह बीमारी तुमने पैदा की आधी, आधी इसने पैदा की।
और ठीक ऐसा ही जीवन के बहुत अंगों में कर सकते हो। और एक बार तुम्हारा वचन सार्थक होने लगे, तो तुम्हारा आत्माविश्वास बढ़ेगा, तुम और बलशाली होने लगोगे। जितना तुम्हारा वचन सही होंगे, उतना ही तुम्हें लगेगा कि मैं कुछ दिव्य शक्ति, कोई सिद्धि से भरा हुआ हूं।
यह भरोसा तुम्हारे मंत्र को मजबूत करेगा। हर मंत्र तुम्हारे भरोसे को मजबूत करेगा। तुम धीरे-धीरे अनेक शक्तियों का अनुभव करने लगोगे। यह जो शक्तियों का अनुभव है, इन्हें योग ने सिद्धियां कहा है। ये सिद्धियां परमात्मा के मार्ग पर सबसे बड़ी बाधाएं हैं।
महृषि पतंजलि ने योग-सूत्रों में इनका उल्लेख किया है, ताकि तुम इनसे सावधान रहो। इनकी तरफ जाना ही नहीं है। जा चुके हो, तो वापस लौट आना है। जितना जल्दी लौट आओ, उतना अच्छा है। क्योंकि जितना समय इसमें खोया, वह बिलकुल व्यर्थ ही जाता है।
हर बार जितने आगे तुम इन दिशाओं में जाते हो, उतना लौटना मुश्किल होने लगता है। संसार शक्ति की खोज है, सिद्धि की खोज है। परमात्मा शांति, शून्यता की खोज है। वहां तुम मिटते हो, वहां तुम धीरे-धीरे लीन होते हो। सिद्धि की खोज में आखिर में तुम बचोगे, परमात्मा बिल्कुल नहीं।
शांति की खोज में तुम न बचोगे, अंत में सिर्फ परमात्मा बचेगा। और इन दो में से एक का मिटना जरूरी है। ये दोनों साथ-साथ नहीं हो सकते। परमात्मा और तुम साथ-साथ नहीं हो सकते, तुम्हारा सह-अस्तित्व असंभव है। तब तक तुम हो, तब तक परमात्मा नहीं; जब परमात्मा है, तब तुम नहीं।
तो सिद्धि और शक्ति तो केवल तुम्हें मजबूत करेगी। इसलिए मंत्रों के साधक परम अहंकार से भरे हुए दिखाई पड़ते हैं। धनी का अहंकार उनके सामने कुछ भी नहीं, पद पर बैठे राजनीतिक का अहंकार भी उनके सामने कुछ भी नहीं। उनका अहंकार बड़ा सूक्ष्म और भीतरी है।
और उसका कारण भी है कि धन छीना जा सकता है, चोरी जा सकता है, पद आज है, कल न हो, लेकिन मंत्र का भरोसा ज्यादा प्रबल है।क्योकि चोर छीन नहीं सकते, जनता का लोकमत बदल नहीं सकता। और मंत्र तुम्हारे मन पर ही निर्भर है, किसी और पर नहीं।
इसलिए तुम ज्यादा सबल, आत्मनिर्भर, अपने पैरों पर खड़े मालूम पड़ते हो। साधक अगर सिद्धि की दिशा में चला जाए, तो भटक गया। रस बहुत आएगा, क्योंकि अहंकार को इस तरह की चीजों से ही रस आता है। अगर एक चींटी इस तरफ आ रही है ।
और तुम सिर्फ अपने मनोबल से उसका रास्ता बदल दो, हालांकि इस कृत्य में कोई सार नहीं है, पर फिर भी तुम्हें रस आएगा। उदाहरण के लिए रूस में एक महिला किसी भी वस्तु को अपने मन से चालित कर देती है। टेबिल रखी है, छह फीट दूर वह खड़ी हो जाए, पंद्रह मिनिट मन को एकाग्र करे।
तो वह टेबिल को हिलाना शुरू कर देती है। टेबिल उसकी तरफ सरक सकती है, दूर जा सकती है। और सब तरह की जांच-पड़ताल से सब समझा गया है, कोई धोखाधड़ी नहीं है। परन्तु पंद्रह मिनिट के प्रयोग में उस महिला की बहुत ऊर्जा खो जाता है ।
और एक सप्ताह के लिए वह निर्बल हो जाती है। क्योंकि जब तुम मन को एकाग्र करके अपनी शक्ति को बाहर फेंकते हो, ‘तब’ तुम्हारे शरीर की उर्जा भी उसमें क्षीण होती है। लेकिन फिर भी वह महिला बड़ा आनंद लेती है।इस उपद्रव में उसका सारा जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है ।
और यह एक खेल बन गया है, वैज्ञानिक अध्ययन करने आ रहे हैं कि कोई चमत्कार घटित हो रहा है। लेकिन चमत्कार से प्राप्ति भी क्या है ? टेबिल तुम हाथ से हटा सकते थे, जिसमें कि रत्ती भर ताकत लगती है। उसे तुमने मन से हटाया और दो पौंड शरीर की ऊर्जा क्षीण की ।
रामकृष्ण परमहंस के पास किसी ने आकर एक दिन कहा कि लोग कहते हैं, आप परमहंस हो, लेकिन कोई ऐसी सिद्धि तो दिखाई नहीं पड़ती। मेरे गुरु हैं, वे पानी पर चलते हैं। रामकृष्ण कहने लगे, मैं दो पैसा देकर नदी पार हो जाता हूं। तो जो काम दो पैसे से हो जाता ।
तब उसके लिए क्यो समय लगाऊ । आखिर पानी ही पार होते हैं, तो पानी पार होने में ऐसी बात क्या है ? नाव हो, दो पैसे लेती है, न हो तो व्यक्ति तैर कर पार हो जाए। पर नदी पर चलकर जो व्यक्ति पार होता वहाँ अहङ्कार खड़ा होता लेकिन नाव में बैठकर अहंकार खड़ा नहीं हो सकता।
मंत्र शक्ति स्रोत हैं और सभी धर्मों ने मंत्र खोज लिए हैं, क्योंकि सभी धर्म शांति की तलाश से शक्ति की तलाश में पतित हो जाते हैं।‘मंत्र’ का वास्तविक अर्थ है, मन को स्थिर करने वाला अर्थात जो मन की गति को रोक सके। पूरे विश्वास के साथ मंत्र जपने से सफलता प्राप्त होती है।
मंत्र में कभी शंका नहीं करनी चाहिए। मंत्र में जिसकी जैसी भावना होती है, उसको वैसी ही सिद्घि प्राप्त होती है। मंत्र शक्ति उतनी ही सामर्थ्यवान बन जाएगी। अचेतन मन को जागृत करने की वैज्ञानिक विधि को मंत्र जप कहते हैं। मंत्र जप से मनोबल दृढ़ होता है।
आस्था में परिपक्वताआती है, बुद्घि निर्मल होती है। भावपूर्वक मंत्र को बार-बार दोहराना जप कहलाता है। मंत्र के अक्षर, मंत्र के अर्थ, जप करने की विधि को अच्छी प्रकार सीखकर उसके अनुसार जप करने से साधक की योग्यता विकसित होती है। मंत्र जपने से पुराने संस्कार हटते जाते हैं।
मंत्र जप से मन पवित्र होता है। दुख, चिन्ता, भय, शोक, रोग आदि निवृत्त होने लगते हैं। सुख-समृद्घि और सफलता की प्राप्ति में मदद मिलती हैं। मंत्र के माध्यम से आप अपने मन की इच्छानुसार फल प्राप्त कर सकते हैं। वट वृक्ष का बीज और मंत्र, द्वितीया के चन्द्रमा की तरह छोटा दिखाई देता है।
परन्तु बढ़ते-बढ़ते रंग बिखेर देता है। सारा संसार देवताओं के अधीन हैं, देवता मंत्र के अधीन हैं, मंत्र योगी के अधीन है और योगी परमात्मा के अधीन है। जिन मंत्रों को हम उच्चारित करते हैं तो उच्चारण करने से जो ध्वनि पैदा होती है ।
उस ध्वनि के अन्दर एक विचित्र प्रकार की शक्ति छिपी रहती है जो बड़ी शक्तिशाली होती है। जिससे बड़े से बड़ा प्रलय व सृजन कार्य होता है। ध्वनि विशेषज्ञों ने इसको प्रमाणित किया है। ध्वनि को विश्व ब्रह्मïड का एक संक्षिप्त रूप कहा जाता है।
वायु, जल और पृथ्वी इन तीन चीजों से ध्वनियां उत्पन्न होती है। वायु की तरंगों से प्राप्त होने वाली ध्वनि की गति प्रति सेकेंड 1088 फुट होती है। जल तरंगों से गति इससे भी तेज है जो 4900 फुट चलती है तथा पृथ्वी के माध्यम से यह और भी तीव्र हो जाती है अर्थात एक सेकेंड में 16400 फुट।
सभी जीवित प्राणी ध्वनि के प्रभाव को अनुभव करते हैं। आप किसी व्यक्ति को गाली देते हैं, क्रोधित होकर डांटते हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो जाता है। उसी व्यक्ति के साथ आप मधुर वचन बोलते हैं वह प्रसन्नचित होकर गदगद हो जाता है।
अपने आपको हर समय न्यौछावर करने को तैयार रहता है। यह सब चमत्कार ध्वनि का है। गायन कला के अनुसार कंठ को अमुक आरोह-अवरोहों के अनुरूप उतार-चढ़ाव के स्वरों से युक्त करके जो ध्वनि प्रवाह होता है वह गायन है।
इसी प्रकार मुख के उच्चारण मंत्र को अमुक शब्द क्रमवार बार-बार लगातार संचालन करने से जो विशेष प्रकार की ध्वनि प्रवाह संचारित करने से जो विशेष प्रकार की ध्वनि प्रवाह संचारित होती है वही मंत्र की भौतिक क्षमता होती है।बयही ध्वनि का प्रभाव सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करता है।
इसके अन्दर विद्यमान 3 ग्रन्थियों, षटचक्रों, षोडश माष्टकाडों, 24 उपत्यिकाओं तथा 84 नाड़ियों को झंकृत करने में मंत्र शक्ति का ध्वनि उच्चारण बहुत कार्य करता है और दिव्य शक्ति प्राप्ति हेतु मंत्र के शब्दों का उच्चारण ही बड़ा कारण है।
सील और डॉल्फिन नामक जन्तु मधुर संगीत की लहरें सुनकर शिकारियों के जाल मे फंस जाते हैं। बीन की ध्वनि पर सर्प, बांसुरी की ध्वनि पर हिरण वशीभूत हो जाते हैं। हौलेण्ड के पशु पालकों ने गायों का दूध निकालते समय संगीत बजाने का क्रम चलाया ।
और अधिक मात्रा में दूध की प्राप्ति की । वहीं यूगोस्वालिया में फसल को सुविकसित करने लिए अपने खेतों पर वाद्य ध्वनि यंत्र से संगीतमय ध्वनि प्रभावित की जिसका परिणाम उत्साहवर्धक पाया गया। जो मंत्र जिस देवता से सम्बन्धित होता है ।
वह उसकी शक्ति को जागृत कर आत्मसात कर लेता है। मंत्र साधक स्वयं देवता तुल्य होकर जन-कल्याण करने लगता है। मंत्र साधक को सशक्त व जागृत बनाता है। जागृत मंत्र के साधक से जो कुछ चाहता है वह उसे अवश्य प्राप्त हो जाता है।
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वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके...
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