NDB एक नया तकनीक है, जो न्यूक्लियर जेनरेटर की तरह काम करता है इसमें. परमाणु कचरे से रेडियोधर्मी क्षय ऊर्जा को ऊर्जा में परिवर्तित करके इसके दीर्घकालिक गुणों और दीर्घायु को सुनिश्चित किया जाता है. यह बैट्री खुद को चार्ज कर लेता है.
सोचिए, हमारी ज़िंदगी बिजली पर आश्रित हो चुकी है. पंखा से लेकर टीवी तक, मोबाइल से लेकर घड़ी तक, एयरोप्लेन से लेकर अंतरीक्षयान तक, सबकुछ बिजली पर ही आश्रित है. बिजली के कारण हमारी ज़िंदगी आसान हो चुकी है. बिजली कई तरीकों से बनाई जाती हैं. हवा की मदद से, पानी की मदद से, कोयले की मदद से बिजली बनाते हैं. बिजली को संरक्षित रखने के लिए विज्ञान ने बैट्रियों का निर्माण किया है. बैट्रियों को हमें बार-बार चार्ज करना पड़ता है. अगर चार्ज नहीं करेंगे तो फिर हमारा डिवाइस काम करना बंद कर देगा. देखा जाए तो हमारी जिंदगी की बैटरी पर निर्भरता काफी बढ़ गई है. अगर आज मैं आपको एक ऐसी बैट्री के बारे में बताऊं तो 28 हज़ार साल तक चलेगी, तो कैसा लगेगा? जी हां, ये पूरी तरह से सच है. अमेरिका के कैलिफॉर्निया स्थित ( NDB has made a self-charging battery) एक कंपनी का दावा है कि वो एक बैट्री बनाने जा रही है जो 28 हज़ार साल तक चलेगी. इस बैट्री का नाम डायमंड बैट्री है, जो परमाणु कचरे से बनती है.
NDB की वेबसाइट के अनुसार भविष्य में बैटरी अब नैनो डायमंड बैटरी (NDP) पर काम करेगी. द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, ये हाई पॉवर, डायमंड-आधारित अल्फा, बीटा और न्यूट्रॉन वोल्टाइक बैटरी होती है. जो अपने पूरे लाइफ स्पैन में इस्तेमाल होने के दौरान परंपरागत केमिकल बैटरी से अलग ग्रीन एनर्जी देगा.
NDB क्या है?
NDB एक नया तकनीक है, जो न्यूक्लियर जेनरेटर की तरह काम करता है इसमें. परमाणु कचरे से रेडियोधर्मी क्षय ऊर्जा को ऊर्जा में परिवर्तित करके इसके दीर्घकालिक गुणों और दीर्घायु को सुनिश्चित किया जाता है. यह बैट्री खुद को चार्ज कर लेता है. सेल्फ-चार्जिंग प्रोसेस के कारण ये बैटरी 28,000 साल तक चल सकती है, इस सेल्फ चार्जिंग प्रोसेस के लिए बैटरी को सिर्फ प्राकृतिक हवा की जरूरत होती है
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वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके...
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