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वंशलोचन स्त्री प्रजाति के बाँस पेड़ों से प्राप्त एक प्रकार की हर्बल सिलिका है

 वंशलोचन स्त्री प्रजाति के बाँस पेड़ों से प्राप्त एक प्रकार की हर्बल सिलिका है,बांस सिलिका (FOLIUM BAMBUSEA) में अन्य सिलिका स्रोतों की तुलना में अधिक सिलिकॉन डाइऑक्साइड होता है। इसमें लगभग 70 से 90% सिलिका होती है। इसमें मुख्य तौर पर सिलिका (सिलिकॉन डाइऑक्साइड) होती है, जो हड्डियों, स्नायुबंधन, tendons और त्वचा के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है।


👉इसमें शरीर के लिए आवश्यक अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं। यह समग्र स्वास्थ्य में सुधार करता है l वंशलोचन का शरीर के ऊतकों पर पुनर्स्थापनात्मक प्रभाव होता है।


वंशलोचन में कई औषधि गुण होते है।👇👇


👉आयुर्वेद के अनुसार, यह प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, इसलिए यह सितोपलादि चूर्ण का एक मुख्य घटक है जिसका उपयोग इम्युनो-मॉड्यूलेटर के रूप में किया जाता है।


👉यह सर्दी और बहती नाक के लिए बहुत प्रभावी दवा है।


👉वंशलोचन में अल्सर से बचाव करनेवाले गुण हैं। प्रवाल पिष्टी, मुक्ता पिष्टी, और यशद भस्म के साथ, यह पेप्टिक अल्सर और आंत्र सूजन के रोगों जैसे अल्सरेटिव कोलाइटिस और Crohn's disease में उत्कृष्ट परिणाम देता है।


👉बालों के विकास को प्रोत्साहित कर बालों को मजबूत बनाता है। यह प्रभाव उसमें स्थित प्राकृतिक सिलिका के कारण है। इसमें मौजूद सिलिका बालों को पतला होने से और बाल झड़ने से रोकता है।


👉वंशलोचन के गुण-लाभ और प्रयोग- वंशलोचन उत्तेजक, ज्वरहर, कफनि:सारक, बल्य, वृष्य, प्यासशमन करने वाला, उद्वेष्ठननिरोधि एवं माही होता है।


👉वंशलोचन से वसनसंस्थान की श्लेष्मलकला को पुष्टि मिलती है तथा कफ की मात्रा कम होती है।


👉वंशलोचन से बने हुए सितोपलादि चूर्ण का व्यवहार जीर्णज्वर, श्वास, कास, क्षय, मन्दाग्नि, कमजोरी, कफ में खून जाना, दाह, पूयमेह, मूत्रदाह तथा वातविकार एवं सर्पदंश में किया जाता है।


👉इसकी कोमल गांठ तथा पत्रों का क्वाय गर्भाशय संकोचक होता है। इसका उपयोग प्रसूता में आतंवशुद्धि के लिए एवं अन्य आर्तव विकारों में किया जाता है।


👉वंशलोचन के कोमलपत्र का उपयोग कफ से खून जाना, कुष्ठ, ज्वर तथा बच्चों के सूत्रकृमि में किया जाता है।


👉वंशलोचन के प्रांकुर (Shoots) का रस निकालकर कृमियुक्त थावों पर डाला जाता है तथा बाद में उसका पुल्टिस उन पर बाँध दिया जाता है।


👉जिन लोगों का पाचन ठीक नहीं होता उनको इसके कोमल प्रांकुरों से बने सिरके का उपयोग मांस-मछली के साथ देना उपयोगी होता है। इससे भूख बढ़ती है तथा पाचन भी ठीक होता है।


👉वंशलोचन की गाँठों को पीसकर जोड़ों के दर्द पर उसका बन्धन उपयोगी है।


👉वंशलोचन के बीज को गरीब लोग चावल के रूप में खाते हैं।


👉वंशलोचन का मूल विस्फोटक व्याधियों (Eruptive affections) में बहुत उपयोगी है तथा दाद पर लाभदायक है।

वंशलोचन के पुष्परस का उपयोग कर्णबिन्दु के रूप में कर्णशूल एवं बाधिर्य आदि में किया जाता है।


👉सेवन विधि एवं मात्रा- वंशलोचन चूर्ण 1 ग्राम सादे जल या गुनगुने दूध से लेना हितकारी रहता है।


👉अमृतम द्वारा निर्मित लोजेन्ज माल्ट में वंशलोचन का विशेष पध्दति द्वारा मिश्रण किया जाता है।


👉सावधानियां : आयुर्वेद के अनुसार, वंशलोचन ज्यादा मात्रा में लेना प्रोस्टेट ग्रंथि और फेफड़ों के लिए अच्छा नहीं है I पथरी होनेपर और स्तनपान के दौरान इसका प्रयोग ना करे l

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