सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मरने के बाद कौन पहुंचता है देवलोक

 मरने के बाद कौन पहुंचता है देवलोक  ?


मरने के बाद व्यक्ति की तीन तरह की गतियां होती हैं

( १ ) : - उर्ध्व गति


( २ ) : - स्थिर गति और


( ३ ) : - अधो गति।


व्यक्ति जब देह छोड़ता है तब सर्वप्रथम वह सूक्ष्म शरीर में प्रवेश कर जाता है। सूक्ष्म शरीर की गति के अनुसार ही वह भिन्न- भिन्न लोक में विचरण करता है और अंत में अपनी गति अनुसार ही पुन: गर्भ धारण करता है।


आत्मा के तीन स्वरूप माने गए हैं


१ ) : - जीवात्मा,


( २ ) : - प्रेतात्मा और


( ३ ) : - सूक्ष्मात्मा


जो भौतिक शरीर में वास करता है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। तीसरा स्वरूप है सूक्ष्म स्वरूप। मरने के बाद जब आत्मा सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, तब उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।


कमजोर सूक्ष्म शरीर से ऊपर की यात्रा मुश्किल हो जाती है तब ऐसा व्यक्ति नीचे के लोक में स्वत: ही गिर जाता है या वह मृत्युलोक में ही पड़ा रहता है और दूसरे जन्म का इंतजार करता है। उसका यह इंतजार 100 वर्ष से 1000 वर्ष तक की अवधि का भी हो सकता है।


पहले बताए गए आत्मा के तीन स्वरूप से अलग


( १) : -  पहली विज्ञान आत्मा,


( २ ) : - दूसरी महान आत्मा और


( ३ ) : - तीसरी भूत आत्मा।


( १ ) : - विज्ञान आत्मा वह है, जो गर्भाधान से पहले स्त्री-पुरुष में संभोग की इच्छा उत्पन्न करती है, वह आत्मा रोदसी नामक मंडल से आता है, उक्त मंडल पृथ्वी से सत्ताईस हजार मील दूर है।


( २ ) : - महान आत्मा वह है, जो चन्द्रलोक से अट्ठाईस अंशात्मक रेतस बनाकर आता है, उसी 28 अंश रेतस से पुरुष पुत्र पैदा करता है। 28 अंश रेतस लेकर आया महान आत्मा मरने के बाद चन्द्रलोक पहुंच जाता है, जहां उससे वहीं 28 अंश रेतस मांगा जाता है। चंद्रलोक में वह आत्मा अपने स्वजातीय लोक में रहता है।


( ३ ) : - भूतात्मा वह है, जो माता-पिता द्वारा खाने वाले अन्न के रस से बने वायु द्वारा गर्भ पिण्ड में प्रवेश करता है। उससे खाए गए अन्न और पानी की मात्रा के अनुसार अहम भाव शामिल होता है, इसी को प्रज्ञानात्मा तथा भूतात्मा कहते हैं। यह भूतात्मा पृथ्वी के अलावा किसी अन्य लोक में नहीं जा सकता है।


वे लोग जो जिंदगीभर क्रोध, कलह, नशा, भोग-संभोग, मांसभक्षण आदि धर्म-विरुद्ध निंदित कर्म में लगे रहे हैं मृत्यु के बाद उन्हें अधो गति प्राप्त होती। जिन्होंने थोड़ा-बहुत धर्म भी साधा है या जो मध्यम मार्ग में रहे हैं उन्हें स्थिर गति प्राप्त होती है।


और जिन्होंने वेदसम्मत आचरण करते हुए जीवनपर्यंत यम-नियमों का पालन किया है उन्हें उर्ध्व गति प्राप्त होती है।


अधो गति वाला आत्मा कीट-पतंगे, कीड़े-मकौड़े, रेंगने वाले जंतु, जलचर प्राणी और पेड़-पौधे आदि योनि में पहुंच जाता है।


स्थिर गति वाला आत्मा पशु, पक्षी और मनुष्य की योनि में पहुंच जाता है, लेकिन जो उर्ध्व गति वाला आत्मा है उनमें से कुछ पितरों के लोक और कुछ देवलोक पहुंच जाता है।


जो आत्मा अपने आध्यात्मिक बल के द्वारा देवलोक चला जाता है वह देवलोक में रहकर सुखों को भोगता है। यदि वहां भी वह देवतुल्य बनकर रहता है तो देवता हो जाता है। लेकिन यदि उनमें राग-द्वेष उत्पन्न होता है तो वह फिर से मृत्युलोक में मनुष्य योनि में जन्म ले लेता है।


लेकिन उर्ध्व गति प्राप्त कुछ आत्माएं अपने आध्यात्मिक बल की शक्ति से पितर और देवलोक से ऊपर ब्रह्मलोक में जाकर सदा के लिए जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।


यही मोक्ष है.......

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पहला मेंढक जो अंडे नहीं बच्चे देता है

वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके...

क्या है आदि शंकर द्वारा लिखित ''सौंदर्य लहरी''की महिमा

?     ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥  अर्थ :'' हे! परमेश्वर ,हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों  (गुरू और शिष्य) को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें''।      ''सौंदर्य लहरी''की महिमा   ;- 17 FACTS;- 1-सौंदर्य लहरी (संस्कृत: सौन्दरयलहरी) जिसका अर्थ है “सौंदर्य की लहरें” ऋषि आदि शंकर द्वारा लिखित संस्कृत में एक प्रसिद्ध साहित्यिक कृति है। कुछ लोगों का मानना है कि पहला भाग “आनंद लहरी” मेरु पर्वत पर स्वयं गणेश (या पुष्पदंत द्वारा) द्वारा उकेरा गया था। शंकर के शिक्षक गोविंद भगवदपाद के शिक्षक ऋषि गौड़पाद ने पुष्पदंत के लेखन को याद किया जिसे आदि शंकराचार्य तक ले जाया गया था। इसके एक सौ तीन श्लोक (छंद) शिव की पत्नी देवी पार्वती / दक्षिणायनी की सुंदरता, कृपा और उदारता की प्रशंसा करते हैं।सौन्दर्यलहरी/शाब्दिक अर्थ...

स्त्री-पुरुष क्यों दूसरे स्त्री-पुरुषों के प्रति आकर्षित हैं आजकल

 [[[नमःशिवाय]]]              श्री गुरूवे नम:                                                                              #प्राण_ओर_आकर्षण  स्त्री-पुरुष क्यों दूसरे स्त्री-पुरुषों के प्रति आकर्षित हैं आजकल इसका कारण है--अपान प्राण। जो एक से संतुष्ट नहीं हो सकता, वह कभी संतुष्ट नहीं होता। उसका जीवन एक मृग- तृष्णा है। इसलिए भारतीय योग में ब्रह्मचर्य आश्रम का यही उद्देश्य रहा है कि 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करे। इसका अर्थ यह नहीं कि पुरष नारी की ओर देखे भी नहीं। ऐसा नहीं था --प्राचीन काल में गुरु अपने शिष्य को अभ्यास कराता था जिसमें अपान प्राण और कूर्म प्राण को साधा जा सके और आगे का गृहस्थ जीवन सफल रहे--यही इसका गूढ़ रहस्य था।प्राचीन काल में चार आश्रमों का बड़ा ही महत्व था। इसके पीछे गंभीर आशय था। जीवन को संतुलित कर स्वस्थ रहकर अपने कर्म को पूर्ण करना ...