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स्त्री पुरुष कि भीतरी ऊर्जा और भक्ति योग

 स्त्री पुरुष कि भीतरी ऊर्जा और भक्ति योग 

*पुरुष शरीर के भीतर जो ऊर्जा केन्द्र है वह लिंग से स्त्री है।

स्त्री शरीर के भीतरी जो केंद्र मे ऊर्जा हैं वह लिंग से पुरुष है।


स्त्री कि भीतर चैतन्य ऊर्जा, शिव सूक्ष्म ऊर्जा हैं ये वास्तविक चेतन उर्जा हैं ।


पुरुष के भीतर जो ऊर्जा  है वह जड़ प्रधान है इसलिए वह भीतरी तल पर भारी और जड़ उर्जा हैं इसलिए जद स्थूल होने से ये नीचे मूलाधार में स्थित हैं।


स्त्री में पुरूष ऊर्जा है शिव है वह रूपांतरण उर्जा हैं उसमें सात्विकता है  वह सत गुण भार में हल्की  सरल उर्जा है ।


पुरुष के भीतर केंद्र मे उस मूलाधार में जड़ उर्जा हैं जो AC  विद्युत की तरह खतरनाक है, ये विस्फोट झटका वाली उर्जा पुरुष के भीरत है।


जो स्त्री शरीर कि परिधि है बाहरी रंग रूप सौंदर्य है वह जड़ ऊर्जा का प्रतिक है जो पुरुष की कुंडलिनी मे मूलाधार में स्थित है, यही पुरुष का मूल अधार हैं।


स्त्री के भीतर पुरुष यानि चैतन्य ऊर्जा से उसकी वाणी उसकी चाल चलन नृत्य कूदना शरीर का मोड़ना उसके मुख्य कारण ये कि पुरूष ऊर्जा का उपयोग है ।जो सकारात्मक है , यह परमाणु रचना का प्रोटॉन जैसी ऊर्जा है।


पुरूष की भीतर जो स्त्री जड़ ऊर्जा है वह नकारात्म है। जिसे परमाणु का इलेक्ट्रॉन आवेश कहते है।जैसे पुरुष मानसिक रूप से स्थिर नहीं  है वैसे ही परमाणु मे इलेक्ट्रॉन गति शील होते हैं जो परमाणु की परिधि पर होते है।


योग धर्म संन्यास आध्यात्मिक जो भक्ति योग मार्ग हैं, यह स्त्री प्रधान है ।तब जो पुरुष पिछले जन्म में सेक्स स्त्री काम जड़ साधन के गहन अनुभवी होगा उसे काम का बोध होगा वह पुरुष सिर्फ उस जन्म में भक्ति योग में सफल होगा या समस्त स्त्री जाति भक्ति योग सफल हो सकती है ।


भक्ति जिसका हृदय चक्र  में उर्जा पूँहच गई है  ठहर गई है ,हृदय से स्त्रैण स्वभाव वाले पुरुष भक्ति में सफ़ल होते हैं ।


धर्म के विश्वाश श्रद्धा आस्था यह सब स्त्रैण है यही भक्ती मार्ग में शस्त्र है , तब यह डीबी भक्ति मार्ग में उपयोगी है ।


जिस  भक्ति गुण शस्त्र के माध्यम सी विश्वास श्रद्धा से धन साधन सफलता की मंदिरों में तीर्थों मे जो भीख मांगते है वह श्रद्धा आस्था नहीं है । जिस हथियार से भक्ति होती है उन्हें हथियार से संसार साधन संसार सुख की मांग में उपयोग करते है तब जायज हैं कि धर्म धंधा ढोंग बनेगा ही ।


 अतीत सनातन में किसी भी भक्त ने अपने श्रद्धा आस्था का उपयोग भीख मांगने के लिए र देते !तब कोई भक्त पैदा नहीं होता ?


जिसे भक्ति के मार्ग चाहिए वह अपना स्वभाव को अध्ययन करे, यदि स्वभाव में ममता करुणा दया समर्पण सेवा हो तो उसी भक्ति मार्ग में जरूर जाना चाहिए।


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