---------:शरीर और साधना:---------
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भाग--01
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परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन
पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन
विश्वब्रह्माण्ड में तो सब कुछ रहस्यमय है वह भी जो हमारे विचार से परे दिखता है। उन रहस्यों में हमारा यह भौतिक शरीर कम रहस्यमय नहीं है।
प्राचीन काल से लेकर आज तक मनुष्य स्वयं को खोज रहा है। यह खोज आध्यात्मिक क्रांति से लेकर विज्ञान-क्रांति तक चल रही है। आज का विज्ञान मानव के आंतरिक और बाह्य रचनाओं का गहन अध्ययन कर रहा है।
आज का मानव कल कैसा होगा ? आज का युग एक क्रांति-युग है, मानव जीवन का संक्रमण काल है। आज का मानव आधुनिकता और अध्यात्म--दोनों जीवन को एक साथ जी रहा है। वह आधुनिक जीवन के साथ आध्यात्मिक भी रहना चाहता है। लेकिन आने वाले कल का मानव आधा मशीन और आधा मानव होगा। तब संवेदना कहाँ होगी ? तब क्या वह अध्यात्म और स्वयं के सृजन तथा सृजन करने वाले परमतत्व को भी भूल जाएगा ? वह स्वयं को ही सृजनकर्ता मानने लगेगा ?...आदि आदि ये ऐसे प्रश्न हैं जो उसके मानस-पटल को उद्वेलित करते रहते हैं।
आज सब कुछ तीव्रता से बदल रहा है। आज का मानव अति अशान्त होता जा रहा है क्योंकि उसका सारा समय यन्त्र और मशीन से जुड़ता जा रहा है। प्रश्न यह है कि क्या भविष्य का मानव पूर्ण रूप से यांत्रिक हो जाएगा ? उसके अन्दर प्रेम, भावना, मन की निश्छलता आदि खत्म हो जाएगी ? क्या वह मात्र यंत्रमानव (रोबोट) ही रह जायेगा, क्या अध्यात्म से उसका कोई लेना-देना नहीं रह जायेगा ?
21 वीं सदी के बारे में आज के वैज्ञानिकों का कहना है--आगे अब एक ऐसा संसार होगा जो कल्पनाओं से परे होगा। शरीर तो वही होगा, लेकिन उसके हर अंग में चिप लगे होंगे। चमत्कारिक नैनो उपकरण यानी मानव स्वयं में मोबाइल होगा। स्वयं ही इंटरनेट से जुड़ा होगा, खुद ही विचारों की तरंगों के साथ दुनियाँ के किसी कोने में पहुंच जाने की त्रिआयामी प्रोजेक्शन सुविधा होगी। सम्भवतया हज़ारों साल का स्मार्ट मानव 21 वीं सदी का होगा।
21 वीं सदी के अंत होते- होते शायद सब कुछ बदल चुका होगा--जीवन जीने का ढंग, मानवीय आचार-विचार, संस्कृति, सभ्यता, सामाजिकता सभी कुछ। प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक #मिथियो #काकू का कहना है--22 वीं सदी तक पूरी दुनियां में यन्त्रमानवों (रोबोट्स) की भरमार हो जायेगी। दुनियाँ में किसी भी काम के लिए वे कुशल व सिद्धहस्त होंगे। हमारी हर बात उन्हें समझ में आयेगी। उन्होंने आगे बतलाया-- जैसे-जैसे यंत्रमानव में विकास होता जाएगा, वे और भी करामाती होते जाएंगे। वे भावनाओं से भी युक्त होंगे। यानी हमारी-आपकी बगवनाओं को समझेंगे। कहने की आवश्यकता नहीं--अब भावनाओं की प्रकृति को विज्ञान की दृष्टि से वैज्ञानिक देखने-समझने का प्रयास कर रहे हैं। बहुत कुछ सम्भव है कि वे सफल भी हो जाएं। हमारी भावनाएं ही हमसे कहती हैं कि क्या अच्छा है, क्या बुरा है ? जब हम अपनी पसन्द की भावना महसूस करते हैं तो इसका अर्थ होता है--वह वस्तु हमारे लिए उपयोगी है क्योंकि भावनाओं के कारण ही हम अच्छे-बुरे का निर्णय करते हैं और उन्हीं के आधार पर चयन भी करते हैं। बहुत कुछ सम्भव है कि भावनाओं को तकनीक के साथ मिलाने वाली बात समझने के बाद वैज्ञानिक ऐसे यंत्रमानव बना सकेंगे जो हमारी आवश्यकताओं के साथ-साथ भावनात्मक साथी भी होंगे हमारी हर भावना को समझेंगे। हमारे दुःखों में दुःखी होंगे और हमारी खुशी में खुश होंगे। sabhar shivaram Tiwari Facebook wall
वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके...
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