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मार्च, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

स्त्री के स्तनों से जुड़ा होता है स्त्री का सारा व्यक्तित्व

 ईस्वर ने स्तन क्यों दिये....? समझिये... बिना स्तन कोई स्त्री की कल्पना व्यर्थ है..!! इसे फैशन या दिखावा ना बनायें... और अगर दिखाना ही है तो आपका पति है दूसरे को क्यों दिखाना...? स्त्री के स्तनों से जुड़ा होता है स्त्री का सारा व्यक्तित्व । जब तक स्त्री माँ नही बन जाती तब तक उसकी ऊर्जा पूर्णतः स्तनों तक नही पहुँचती..!! शरीर शास्त्री ये प्रश्न उठाते रहते है। कि पुरूष के शरीर में स्तन क्यों होते है। जब कि उनकी कोई आवश्यकता नहीं दिखाई देती है। क्योंकि पुरूष को बच्चे को दूध तो पिलाना नहीं है। फिर उनकी क्या आवश्यकता है। वे ऋणात्‍मक ध्रुव है। इसलिए तो पुरूष के मन में स्त्री के स्तनों की और इतना आकर्षण है। वे धनात्‍मक ध्रुव है। इतने काव्य, साहित्य, चित्र,मूर्तियां सब कुछ स्त्री के स्तनों से जुड़े है। ऐसा लगता है जैस पुरूष को स्त्री के पूरे शरीर की अपेक्षा उसके स्तनों में अधिक रस है। और यह कोई नई बात नहीं है। गुफाओं में मिले प्राचीनतम चित्र भी स्तनों के ही है। स्तन उनमें महत्‍वपूर्ण है। बाकी का सारा शरीर ऐसा मालूम पड़ता है कि जैसे स्तनों के चारों और बनाया गया हो। स्तन आधार भूत है। क्‍योंकि ...

दुनिया का पहला अंतरिक्ष होटल "2027 में,

 दुनिया का पहला अंतरिक्ष होटल "2027 में, पृथ्वी की कक्षा में खुलने की संभावना है। जिसका नाम 'वॉयेजर होटल' होगा। यह होटल 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगाएगा और इस होटल में लगभग 400 लोगों के ठहरने का इंतजाम होगा। इस होटल में बार, लाउंज, सिनेमा और स्पा जैसी आधुनिक सुविधाएं मौजूद होंगी।" #viralpost2025シ #facthubanup #viralpost2024 #viralphotochallenge #foodblogger #quotes #facts #couple #love #post Sweta Singh Vlogs Rupesh Kumar 

विज्ञान अर्थात विषय का ज्ञान: ऋतु सिसोदिया

 विज्ञान अर्थात विषय का ज्ञान 10 हजार करोड़ की पावर आपके ब्रेन में है इसका सही से उपयोग किया तो आइंस्टीन बन जाओगे आतंकवादी भी बन जाओगे जादूगर भी बन जाओगे लोगो को मोरख भी बनाओगे सोच पर प्रहार  हमारे दिमाग का निर्माण कैसे हुआ ऊर्जा भोजन से प्राय होती है केमिकल रिलीज होते है खोज कीजिये भाई वैदिक scince सनातन वर्ड ही वेद से निकला मंत्र का प्रभाव साइंस के प्रक्रिया है क्योंकि ऊर्जा का ही खेल है सारा इसलिए ही तो हम आज भी मांनासिक गुलाम है क्योंकि ज्ञान को जान नही समझा नही सत्य को धारण कैसे करते जब जानते ही नही थे लड़ो भिड़ा मार काट बस इसे में उलझाए रखा बाकी सभी अन्य जाती उठान क्यों कर गयी ज्ञान कौशल को बढ़ाया हमने अहनकार को इसलिए प्रगति अवरुद्ध हुई एन्टीनाधारी  निहितार्थ स्वर्थी अल्प श्रम जीवी है परजीवी अधिक है तो कोई खतरा मोल ना लेते इधर उधर लुढ़कते रहते है समय काल परिस्थितियों अनुरूप वेश बदल लेते वह लक्षय से भृमित नही थे प्रत्येक जीव स्वतंत्र है भाई तो क्षत्रय बन्धन में क्यों है अब मौके का लाभ उठाओ ज्ञान कौशल से भरो अपने को  साभार ऋतु सिसोदिया 

ब्रह्म और पंचतत्वों का आपस में सामंजस्य-संक्षिप्त विमर्श

 ब्रह्म और पंचतत्वों का आपस में सामंजस्य-संक्षिप्त विमर्श   =====================================   जो भेद दृष्टि रखते हैं न तो वे पूर्णतः शाक्त हैं न वैष्णव न शैव न ही गाणपत्य और न ही सौर्य। चूंकि ब्रह्म है तो एक ही यथा "एकोहि रुद्रं द्वितीयोनाऽस्ति।  किंतु वह अपने कार्य भेद से अनेकों रुपों में विभक्त होकर साकार रूप ग्रहण कर लेता है - एकोऽहंबहुस्याम:।  जिस प्रकार से मनुष्य देह पंचतत्वों में विभक्त है। उसी प्रकार से वह ब्रह्म भी अपने आप को पांच तत्वों (पंच मुख्य स्वरुपों में ) पंचब्रह्म के रूप में विभक्त करता है। यथा: गणपति, सूर्य, विष्णु, शिव और शक्ति। यहां पर शक्ति का तात्पर्य किसी विशेष शक्ति से मत जोड़ लेना। क्योंकि कुछ लोग उस शक्ति को केवल दुर्गा, काली, तारा, भुवनेश्वरी, त्रिपुर सुंदरी, महालक्ष्मी, चण्डिका आदि तक ही सीमित समझ बैठते हैं। क्योंकि शक्ति के तो असंख्य, अनगिनत और अनंत रुप हैं। ये सब तो केवल कार्यभेद के अनुसार नामांतर मात्र हैं।  वही ब्रह्म जब ब्रह्माण्डोंं की रचना करता है तो सूर्य कहलाता है। आज का विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार करता है क...

आध्यात्मिक चिन्तन आपके शब्दो मे अधिक शक्ति होनी चाहिए आवाज में नही

 आपके शब्दो मे अधिक शक्ति होनी चाहिए आवाज में नही क्योंकि फूल हल्की बारिश में ही खिलते है बाढ़ में नही आप किसी की कितना पसंद करते हो उससे कही ज्यादा उस व्यक्ति का आपके प्रति बर्ताव मायने रखता है पसंद आंतरिक गुणवत्ता के आधार परहोनी चाहिए नाकि बाहरी आकर्षण के आधार पर आकर्षण समय के साथ कम हो जाएगा किन्तु गुणवत्ता में और निखार की संभावनाबनी रहती है  जिस प्रकार मानव तन बाहरी चमक दमक देखकर हर्षित व आनंदित होते है,, सुख व दुख का अनुभव करते है क्योंकि अंर्तमन की गहराई में उतरना ही नही चाहते स्वयम को प्राप्त करना ही नही चाहते है जिसनी स्वयम को प्राप्त कर लिया वही परमात्मा को पाप्तकर आनंद व सुख से भर जाता है  जिस पर परमात्मा की कृपा है फिर उसे किसी अन्य की आवस्यकता नही वह आनंदित है सुखी है प्रतिपल प्रतिक्षण परमात्म की शरण मे  उसे बाहरी कोई भी वस्तु वयक्ति प्रभावित नही कर पाता व्यह मुक्ति की ओर अग्रसर हो जाता है वह परमात्मा का दास कहलाता है जिस हेतु ईश्वर ने उसका चह्यन किया ,,वह अपने कर्तव्य कर्म को पूरी निष्ठा व भक्ति से पूर्ण कर इस जगत से अलविदा लेगा यह पावरफुल सोल दिव्य ऊर्जा...

भारत की अधिकतर भाषाओं की जननी संस्कृत ही है

 संस्कृत भारतीय उप महाद्वीप में यह भाषा लगभग छह हजार साल से पहले बोली जाती रही है। भाषाविज्ञान शास्त्री भी विभिन्न अध्ययनों में साफ कर चुके हैं कि भारत की अधिकतर भाषाएं संस्कृत से ही निकली हैं। वेदों की भाषा वैदिक संस्कृत से ही आधुनिक संस्कृत निकली है। संस्कृत से प्राकृत भाषा का उदय हुआ और  प्राकृत से पालि भाषा। भारत की अधिकतर भाषाओं की जननी संस्कृत ही है ।  हालांकि पिछले कुछ समय से भारत में संस्कृत भाषा लेकर एक कुत्सित अभियान चलाया जा रहा है कि संस्कृत तो  पाली से निकली है। जबकि इस दावे को असत्य  साबित करने के लिए एक ही तथ्य काफी है। वह यह कि संस्कृत का व्याकरण अष्टाध्यायी के रचयिता महर्षि पाणिनी के जन्म के कई सदियों बाद तथागत बुद्ध हुए। महर्षि पाणिनी के साहित्य में बुद्ध का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। यानी  तथागत बुद्ध का कालखंड महर्षि पाणिनी के बाद का है। तथागत बुद्ध ने अपने प्रवचन पालि में दिए।उसी दौहरान पालि भाषा अस्तित्व में थी। यह भी तथ्य है कि पालि को संस्कृत से प्राचीन होने का दावा करने वाले  लोग इस बारे में अपना एक भी रिसर्च पेपर  भारतीय इ...

आंतरिक सशक्त होना है तो सत्य के साथ निष्पक्ष रहो:ऋतु सिसोदिया:

 आंतरिक सशक्त होना है तो सत्य के साथ निष्पक्ष रहो कुटिल दुसरो की हानि करकेखुद का भला सोचता है जबकि आद्यात्मिक्ता की राह पर चलने वाला स्वय दुख सहन करके दुसरो को सुख प्रदान करता है जबकि एक समझदार व्यक्तिना स्वयम की ना किसी अन्य का अहित करके बल्कि समाधान की ओर अग्रसर होता है जिससे सबका लाभ हो या लाभ ना होतो हानि तो कदापि ना हो  चालाक" का मतलब बुरी प्रवृत्ति नहीं होता। इसका अर्थ होता है समझदार, चतुर, और परिस्थिति के अनुसार सही निर्णय लेने वाला व्यक्ति। हालाँकि, कभी-कभी यह नकारात्मक रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है, जब किसी व्यक्ति को अत्यधिक चालाकी या चतुराई से किसी को धोखा देने वाला समझा जाता है। अगर चालाकी का इस्तेमाल सही दिशा में किया जाए, तो यह एक अच्छी विशेषता होती है, क्योंकि यह व्यक्ति को बुद्धिमान और परिस्थितियों को समझने वाला बनाती है। कर्मफल से कोई नही बच पाता अतः सत्कर्म करते रहे  साभार ऋतु सिसोदिया 

संसार में लाखों योनियां हैं। उनमें से सबसे अधिक मूल्यवान और उत्तम योनि मनुष्य की है

 15.3.2025          "संसार में लाखों योनियां हैं। उनमें से सबसे अधिक मूल्यवान और उत्तम योनि मनुष्य की है।" क्योंकि मनुष्य जीवन में बहुत सारी सुख सुविधाएं हैं, जो अन्य प्राणियों को ईश्वर ने लगभग नहीं दी। जैसे कि "ईश्वर ने मनुष्यों को 'विशेष बुद्धि' दी। बोलने के लिए 'भाषा' दी। कर्म करने के लिए 'दो हाथ' दिए। कर्म करने की '24 घंटे की स्वतंत्रता' दी। और 'चार वेदों का ज्ञान' दिया।" ये पांच सुविधाएं अन्य प्राणियों को ईश्वर ने लगभग नहीं दी। "बंदर लंगूर चिंपांजी गोरिल्ला वनमानुष आदि 5/7 प्राणियों को मनुष्यों जैसे हाथ तो दिए, परंतु बाकी सुविधाएं न होने के कारण ये प्राणी हाथ होते हुए भी उनका कोई विशेष लाभ नहीं उठा पाए।"            कहने का सार यह है कि "इतनी उत्तम सुविधाएं सुख साधन स्वतंत्रता आदि जो मनुष्य को मिली हैं, यह मुफ्त में नहीं मिली। यह अनेक उत्तम कर्मों का फल है।" "अब तो सौभाग्य से आपको मनुष्य जन्म मिला है, यह पूर्व जन्म के शुभ कर्मों का फल है। और यह फल ईश्वर की कृपा से प्राप्त हुआ है, अर्थात मनुष्य योनि...

ध्यानम शरणम गच्छामि :ऋतु सिसौदिया आध्यात्मिक एवं सामाजिक चिंतक

 आत्मजागृति से समूल दुखो का नाश होता है जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार करना भगवतभक्ति है,,यदि वह कुमार्गगामी है उसे सत्यपथ पर लाने का प्रयाश भी भगवतभक्ति है क्योंकि तुम्हारा प्रत्येक कर्तव्यकर्म ही धर्म है ,,क्यूँकि तुम्हारा दुख ना सुविधा से ना धन से ना पद से ना प्रतिष्ठा से किसी भी विषय बस्तु से नही आत्मजागृति से ही अंधकार मिटेगा जीवन प्रकाशवान हो जाएगा परस्पर अपेक्षा समूल दुखो का कारण है दुसरो को बदलने की बजाय स्वयम में परिवर्तन करें वह कुटिल कपटी क्रोधी आदी है तो यह उसकी प्रकर्ति है यदि आप सत्यपथ पर है तो ईश्वर न्यायकारी है दुष्ट की दुष्टता से जो हानि आपकी हुई उसकी भरपाई किसी ना किसी रूप में अवश्य होती है क्योंकि श्रष्टि का नियम है सन्तुलन जिसका जैसा कर्म वैसा ही फल,,आप सत्यपथ पर निश्चित होकरपरमात्मा को समर्पित होकर चले  माया में ना उलझकर ईशभक्ति मुक्तिको अग्रसर रहे ध्यानम शरणम गच्छामि  लेखक: ऋतु सिसौदिया आध्यात्मिक एवं सामाजिक चिंतक 

पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को गूढ़ साधनाओं में शीघ्र सफलता मिल जाती है: ऋतु सिसोदिया

 भारत में भी महिला सम्मान दिवस मना लिया गया। जबकि भारत मे महिला सम्मान की धारणा सनातन है। वर्ष में छह छह महीने के अंतर से नवरात्रि पर्व मनाये जाते हैं,दीपावली का त्यौहार जिनमें स्त्री स्वरूपिणी देवी की पूजा उपासना करी जाती है। पुरूष स्वरूप ईश्वर के समान ही स्त्री स्वरूपिणी ईश्वरी की मान्यता है।ऐसा गांव शायद ही कोई होगा जिसमें देवी का स्थान न हो।ऐसी जाति भी शायद ही हो जिसकी कुलदेवी न हो।  मां ही वास्तव में पिता से परिचित करा सकती है। महामाया (स्त्रियों) के प्रति हेय भाव रखने वाले साधक कभी सफल नहीं हो पाते हैं। बड़े बड़े तपस्वी ज्ञानी ऋषि जो महामाया के प्रति हेय भाव रखते थे, उन्हें महामाया ने  येन सफलता के क्षणों में भटका दिया था।उनकी तपस्या भंग हो गई थी। जैसा श्री कृष्ण ने अर्जुन से गीता में कहा था -- श्री भगवान उवाच बहुनि मे व्यतितानि जन्मनि तव चार्जुना तन्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप  भगवान ने कहा: हे अर्जुन, तुम्हारे और मेरे अनेक जन्म हुए हैं। हे परंतप, तुम उन्हें भूल गए हो, जबकि मुझे वे सब याद हैं। मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को विस्मरण कर बैठा है। यही विस्म...

भगवान राम की मुख्य शाखा :कार्तिकेय पुर राजवंश

 कार्तिकेय पर राजवंश एक महत्वपूर्ण राजवंश है इसका भारत में काफी समय तक राज्य रहा है यह एक भगवान राम की मुख्य शाखा रही है कार्तिकेयपुर राजवंश उत्तराखंड में इसका निर्माण सर्वप्रथम बसंत देव ने का किया अयोध्या के अंतिम सम्राट सुमित्रा के बाद उनके बड़े पुत्र राजा शालीवाहन देव उत्तराखंड चले गए जहां उन्होंने जोशीमठ में अपना राज्य कायम किया बाद में उनके शासन सामंत के रूप में भी कार्य किया हर्षवर्धन कल के बाद बसंत देने अपने आप सम्राट घोषित कर दिया 

अपने अंदर अथाह शक्ति समाहित है :ऋतु सिसौदिया

 अपने अंदर अथाह शक्ति समाहित है स्वयम को स्वयं से जोड़ो प्रकर्ति के संरक्षण में ध्यान लगाओ अंतर्मन की गहराई में जाओ सभी सनातनी कथा भागवत रामायण महाभारत को सुनते हैं अन्याय अधर्म आदि बड़ने पर क्षत्रियों ने ही आगे आकर धर्म राष्ट्र रक्षा की तो उनकी ही वीरता की कथा सुनते हैं उनकी ही उपेक्षा करते हैं तो कभी धर्म राष्ट्र की रक्षा हो सकेगी कभी नहीं चिंतन अवश्य करें सत्य को गलत साबित करना असंभव है कोई सत्य को नहीं समझे उसकी बुद्धि ,विचार और मन की समझ ,प्रमाण की कठिनता आदि का खेल समझिए न्याय और मर्यादा की मूर्ति क्षत्रिय,चोर, ठगों, लुटेरों को कब रास आयें गे।। सम्पूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति को समेटे मानव पहले स्वयम को जानना अति आवश्यक तदुपरांत समाज से जुड़े स्वयम के अस्तित्व को खोकर इन निकृष्ट समाज को पा लेना मूर्खता है इसलिए आत्मज्ञान अनिवार्य आत्मबोध अनिवार्य ऐसे शिक्षा प्रणाली का निर्माण हो झा सबका संगर्क विकाश व आद्यत्मिक ज्ञान प्राप्त हो आत्मकल्याण कर ही मनुस्य लोककल्याण कर सकता है ॐ परमात्मने नमः ममहरि शरणम 🚩जय मां भवानी🚩

स्त्री की योनि: सृजन और सम्मान का प्रतीक

 स्त्री की योनि: सृजन और सम्मान का प्रतीक स्त्री की योनि केवल पुरुषों के सुख का माध्यम नहीं है, बल्कि यह इस संसार में नए जीवन का प्रवेश द्वार भी है। यह वह पवित्र स्थान है, जहाँ से हर नया जीवन जन्म लेता है, जहाँ से हर इंसान की यात्रा प्रारंभ होती है। योनि केवल शारीरिक संरचना नहीं, बल्कि सृजन और मातृत्व की शक्ति का प्रतीक है।   प्रकृति ने स्त्री को इस अद्भुत क्षमता से नवाजा है कि वह एक नए जीवन को जन्म दे सके। जब कोई शिशु जन्म लेता है, तो योनि उसके लिए इस दुनिया में आने का मार्ग बनती है। यह केवल एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि प्रेम, धैर्य और मातृत्व के अद्भुत संगम का प्रतीक है। हर स्त्री अपने शरीर को एक नए जीवन के लिए समर्पित करती है, और यह त्याग किसी भी तरह से कम सम्मान के योग्य नहीं हो सकता। सम्मान का महत्व आज भी समाज में कई लोग महिलाओं के प्रति उचित सम्मान नहीं दिखाते। हम उस स्थान का सम्मान करना तो दूर, उसकी महत्ता को भी नहीं समझते, जिसने हमें इस दुनिया में आने का अवसर दिया। यह एक विडंबना है कि जिस योनि से जन्म लेकर हम इस संसार में आए, उसी का अपमान करने से नहीं चूकते। स्त्रि...

लौकिक व अलौकिक जगत में तारतम्य: ऋतु सिसौदिया

 लौकिक व अलौकिक जगत में तारतम्य बिठाने में बढ़ी असहजता हुई  क्योंकि आत्मज्ञान व आत्मबोध ही ना था शायद यही कारण रहा होगा सत्य की खोज को गौतम बुद्ध ने संसार का परित्याग कर वन गमन किया और ऐसा ही उत्तर चढ़ाव हर  तीसरे चौथे व्यक्ति के जीवन मे घटित हो रहा किन्तु वह मोह का लोभ का लालच का परित्याग नही कर पा रहा  आत्म कल्याण करना है तो आत्मसंयमी बनो त्याग दो उस सभी का जो तुम्हारी उन्नति में बाधक है आत्मकल्याण तुम्हारी प्राथमिकता है  जब आप स्वयं आत्मसन्तुष्ट नही मानसिक मजबूत स्थिति में नही तो तुम किसी के सहयोगी बन ही नही सकते परोपकारी बन ही नही सकते अतः विनम्र निवेदन सन्तानो को विवाह संस्कार से बांधकर जिम्मेदारियों में जकड़कर आप सांसारिक कर्तव्य से मुक्त हो सकते है किंतु इससे अन्य जो नई समस्याए उतपन्न होती है फिर उन जिम्मेदारियों को उठाने से मोह क्यों मोड़ते है इन समस्याओं के जन्मदाता तो आप ही है बुद्धि व विवेक को जाग्रत कीजिये परवरिश सुशिक्षा व संस्कार के साथ कीजिये बहुत बड़ा कर्तव्य है विवाह फिर सन्तान को विशाल बृक्ष बनाना  ना कि तुम्हारी गलतियों की सजा का भुगतान किसी क...

हरीतकी "हरड़" का आयुर्वेदिक महत्व

 🌹 हरीतकी को आयुर्वेद में "हरड़" के नाम से भी जाना जाता है।  इसे "सभी रोगों की दवा" कहा जाता है। क्योंकि यह शरीर को शुद्ध करने, पाचन सुधारने, और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करती है। यह त्रिफला (हरीतकी, बिभीतकी और आंवला) का एक मुख्य घटक है। 🌺 हरीतकी के प्रकार :== आयुर्वेद में हरीतकी को सात प्रकारों में बांटा गया है: 1. विजया – शरीर को संतुलित रखती है। 2. रोहिणी – घाव भरने और त्वचा रोगों के लिए फायदेमंद। 3. पूतना – बालों और त्वचा के लिए उपयोगी। 4. अमृता – बुखार और संक्रमण में लाभदायक। 5. अभया – नेत्र रोगों और मस्तिष्क के लिए फायदेमंद। 6. जीवनी – ऊर्जा और शक्ति बढ़ाने वाली। 7. चेतकी – पाचन तंत्र सुधारने में सहायक। हरीतकी के फायदे :=== 1. पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद कब्ज, गैस, अपच और एसिडिटी को दूर करता है। आँतों को साफ करता है और पेट हल्का रखता है। भूख बढ़ाने में मदद करता है। 2. रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बढ़ाए शरीर से विषाक्त पदार्थ (Toxins) बाहर निकालता है। वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण से बचाता है। सर्दी, जुकाम और खांसी में लाभदायक। 3. वजन घटाने में सहाय...

बेल का महत्व

 आयुर्वेद में बेल महत्वपूर्ण औषधि माना गया है जो पाचन संबंधी कई बीमारियों में फायदेमंद है।  इस फल का हर हिस्सा ही सेहत के लिए के लिए गुणकारी है, बाहर से यह फल जितना ही कठोर होता है अंदर से उतना ही मुलायम और गूदेदार होता है। इसके गूदे में मौजूद बीज भी कई बीमारियों के इलाज में फायदा पहुंचाते हैं। सेवन विधि : दो चम्मच बेल के गूदे को आधा गिलास पानी में मिलाकर बेल का जूस (bael juice) बनाएं और इस जूस का दिन में एक से दो बार सेवन करें। किडनी के लिए फायदेमंद : बेल का सेवन किडनी के लिए भी फायदेमंद है और यह किडनी की कार्यक्षमता को और बढ़ाती है। एक शोध के अनुसार बेल की जड़ों और पत्तियों में डायूरेटिक गुण होते हैं जो मूत्र का उत्पादन बढ़ाती हैं। यह ख़ास तौर पर वाटर रिटेंशन की समस्या से आराम दिलाने में बहुत कारगर है। सेवन विधि : आधा चम्मच बेल की पत्तियों के चूर्ण को पानी के साथ मिलाकर सेवन करें। लीवर के लिए फायदेमंद : ऐसा देखा गया है कि बेल की पत्तियां लीवर को स्वस्थ रखने में मदद करती हैं। लीवर से जुड़ी बीमारियां अक्सर तभी होती हैं जब शरीर में टॉक्सिन या हानिकारक विषैले पदार्थ बढ़ जाते हैं या कि...

हमारे अंदर विचार कहा से प्रवेश करते हैं.

 हमारे अंदर विचार कहा से प्रवेश करते हैं..? हमारे मन के 16 हिस्से हैं,, थॉट से लेकर लिबरेशन तक की जर्नी के चार हिस्से हैं जो इस प्रकार है मनस, बुद्धि, चित्त और अहंकार इन सभी के फंक्शन अलग-अलग हैं डे टुडे के डिसीजन मानस लेता है  बुद्धि कैलकुलेट करता है और अहंकार जिससे हमारी पर्सनालिटी बनती है हमारी एक आइडेंटिटी बनती है और चौथा है ,चित्त यानी की मेमोरी इस मेलाइफ टाइम की मेमोरी ही नहीं होती इसमें हमारे सारे लाइफ टाइम के मेमोरी होती है  हमारे बायोलॉजिकल शरीर से लेकर मेंटल शरीर के मेमोरी होती है यह सारे मेमोरी नहीं रहेगी तो हम फ्यूचर के बारे में प्लान नहीं कर पाएंगे,,  इसीलिए मन का जो हिस्सा है वह बेहद जरूरी है क्योंकि हम हमारे पास्ट एक्सपीरियंस से ही अपने फ्यूचर को प्लान करते हैं ,,और अपने प्रेजेंट को भी उसी प्रकार से अपने आप से जो भी गलतियां हुई उससे सीख करके आगे  काम करते हैं। इसमें अब सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है हमारे चित्त का स्मृति जब हम किसी याद के बारे में बात करते हैं,, हमारी जो भी करंट थॉट प्रोसेस है वह हमारी स्मृति के ऊपर ही डिपेंड होता है  अगर आप किसी ...