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भारत की अधिकतर भाषाओं की जननी संस्कृत ही है

 संस्कृत भारतीय उप महाद्वीप में यह भाषा लगभग छह हजार साल से पहले बोली जाती रही है। भाषाविज्ञान शास्त्री भी विभिन्न अध्ययनों में साफ कर चुके हैं कि भारत की अधिकतर भाषाएं संस्कृत से ही निकली हैं। वेदों की भाषा वैदिक संस्कृत से ही आधुनिक संस्कृत निकली है। संस्कृत से प्राकृत भाषा का उदय हुआ और  प्राकृत से पालि भाषा। भारत की अधिकतर भाषाओं की जननी संस्कृत ही है


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हालांकि पिछले कुछ समय से भारत में संस्कृत भाषा लेकर एक कुत्सित अभियान चलाया जा रहा है कि संस्कृत तो  पाली से निकली है। जबकि इस दावे को असत्य  साबित करने के लिए एक ही तथ्य काफी है। वह यह कि संस्कृत का व्याकरण अष्टाध्यायी के रचयिता महर्षि पाणिनी के जन्म के कई सदियों बाद तथागत बुद्ध हुए। महर्षि पाणिनी के साहित्य में बुद्ध का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। यानी  तथागत बुद्ध का कालखंड महर्षि पाणिनी के बाद का है। तथागत बुद्ध ने अपने प्रवचन पालि में दिए।उसी दौहरान पालि भाषा अस्तित्व में थी। यह भी तथ्य है कि पालि को संस्कृत से प्राचीन होने का दावा करने वाले  लोग इस बारे में अपना एक भी रिसर्च पेपर  भारतीय इतिहास कांग्रेस जैसी संस्थाओं के सामने पेश नहीं कर पाए हैं। बस सोशल मीडिया में झूठी बातों को परोस रहे हैं।

अब  संस्कृत को लेकर एक अच्छा समाचार मिला है। यज्ञदेवम के नाम से प्रसिद्ध भारत राव ने सिंधु घाटी की लिपि को पढ़ने का दावा किया है।वे क्रिप्टोग्राफर हैं । गुप्त भाषाओं के जानकार यज्ञदेवम ने इंडस घाटी यानी सिंधु घाटी लिपि को डिकोड किया है। जो कि लगभग 4000 बीसी में लिखी गई थी। यानी आज से लगभग साढ़े छह हजार साल पहले। यज्ञवेदम का अध्ययन बताता है कि संस्कृत  सिंधु घाटी की स्थानीय भाषा  है। क्रिप्टोग्राफी का अर्थ गुप्त भाषाओं को समझने का विज्ञान है।  यज्ञदेवम इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और भाषाविदों के बीच एक अनोखी शख्सियत हैं। वो कहते हैं कि उन्होंने सिंधु घाटी की लिपि की गुत्थी सुलझा ली है। यज्ञदेवम की यह खोज आर्य आक्रमण सिद्धांत को भी चुनौती देती है  साभार : हिमालयी लोग यूट्यूब 

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