आत्मजागृति से समूल दुखो का नाश होता है जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार करना भगवतभक्ति है,,यदि वह कुमार्गगामी है उसे सत्यपथ पर लाने का प्रयाश भी भगवतभक्ति है क्योंकि तुम्हारा प्रत्येक कर्तव्यकर्म ही धर्म है ,,क्यूँकि तुम्हारा दुख ना सुविधा से ना धन से ना पद से ना प्रतिष्ठा से किसी भी विषय बस्तु से नही आत्मजागृति से ही अंधकार मिटेगा जीवन प्रकाशवान हो जाएगा
परस्पर अपेक्षा समूल दुखो का कारण है दुसरो को बदलने की बजाय स्वयम में परिवर्तन करें
वह कुटिल कपटी क्रोधी आदी है तो यह उसकी प्रकर्ति है यदि आप सत्यपथ पर है तो ईश्वर न्यायकारी है दुष्ट की दुष्टता से जो हानि आपकी हुई उसकी भरपाई किसी ना किसी रूप में अवश्य होती है
क्योंकि श्रष्टि का नियम है सन्तुलन
जिसका जैसा कर्म वैसा ही फल,,आप सत्यपथ पर निश्चित होकरपरमात्मा को समर्पित होकर चले
माया में ना उलझकर ईशभक्ति मुक्तिको अग्रसर रहे
ध्यानम शरणम गच्छामि
लेखक: ऋतु सिसौदिया आध्यात्मिक एवं सामाजिक चिंतक
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