भारत में भी महिला सम्मान दिवस मना लिया गया। जबकि भारत मे महिला सम्मान की धारणा सनातन है। वर्ष में छह छह महीने के अंतर से नवरात्रि पर्व मनाये जाते हैं,दीपावली का त्यौहार जिनमें स्त्री स्वरूपिणी देवी की पूजा उपासना करी जाती है। पुरूष स्वरूप ईश्वर के समान ही स्त्री स्वरूपिणी ईश्वरी की मान्यता है।ऐसा गांव शायद ही कोई होगा जिसमें देवी का स्थान न हो।ऐसी जाति भी शायद ही हो जिसकी कुलदेवी न हो।
मां ही वास्तव में पिता से परिचित करा सकती है। महामाया (स्त्रियों) के प्रति हेय भाव रखने वाले साधक कभी सफल नहीं हो पाते हैं। बड़े बड़े तपस्वी ज्ञानी ऋषि जो महामाया के प्रति हेय भाव रखते थे, उन्हें महामाया ने येन सफलता के क्षणों में भटका दिया था।उनकी तपस्या भंग हो गई थी।
जैसा श्री कृष्ण ने अर्जुन से गीता में कहा था --
श्री भगवान उवाच
बहुनि मे व्यतितानि जन्मनि तव चार्जुना
तन्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप
भगवान ने कहा: हे अर्जुन, तुम्हारे और मेरे अनेक जन्म हुए हैं। हे परंतप, तुम उन्हें भूल गए हो, जबकि मुझे वे सब याद हैं।
मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को विस्मरण कर बैठा है। यही विस्मरण अज्ञान है। स्त्रियां भी अपने वास्तविक स्वभाव,स्वरूप का विस्मरण कर बैठीं ।यही अज्ञान समस्याओं का कारण है। अन्यथा स्त्रियों में भी वही शक्ति है जो देवी में है। प्राचीन ग्रंथों में ऋषि स्त्रियों को देवी कहकर ही संबोधित करते हैं। क्योंकि ऋषि जानते थे कि स्त्रियों के भीतर भी जगत जननी महामाया का अंश है।
कुछ साधना विधियों से स्त्रियों को वंचित रखा गया। उसके पीछे राजनीतिक कारण रहे होंगे। क्योंकि पूर्ण जागृत ज्ञानवान शक्ति संपन्न स्त्री को परतंत्रता में रख पाना असंभव है।
जो स्त्रियां स्वयं के वास्तविक स्वभाव स्वरूप को जान लेतीं हैं, वे अबला नहीं बल्कि सबला हो जातीं हैं। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को गूढ़ साधनाओं में शीघ्र सफलता मिल जाती है । क्योंकि भाव की संघनता और उनके उपयोग के मामले में स्त्रियां पुरुषों से बहुत आगे होतीं हैं।
#जय_महामाया
#निसर्गम
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
vigyan ke naye samachar ke liye dekhe