सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संसार में लाखों योनियां हैं। उनमें से सबसे अधिक मूल्यवान और उत्तम योनि मनुष्य की है

 15.3.2025

         "संसार में लाखों योनियां हैं। उनमें से सबसे अधिक मूल्यवान और उत्तम योनि मनुष्य की है।" क्योंकि मनुष्य जीवन में बहुत सारी सुख सुविधाएं हैं, जो अन्य प्राणियों को ईश्वर ने लगभग नहीं दी। जैसे कि "ईश्वर ने मनुष्यों को 'विशेष बुद्धि' दी। बोलने के लिए 'भाषा' दी। कर्म करने के लिए 'दो हाथ' दिए। कर्म करने की '24 घंटे की स्वतंत्रता' दी। और 'चार वेदों का ज्ञान' दिया।" ये पांच सुविधाएं अन्य प्राणियों को ईश्वर ने लगभग नहीं दी। "बंदर लंगूर चिंपांजी गोरिल्ला वनमानुष आदि 5/7 प्राणियों को मनुष्यों जैसे हाथ तो दिए, परंतु बाकी सुविधाएं न होने के कारण ये प्राणी हाथ होते हुए भी उनका कोई विशेष लाभ नहीं उठा पाए।"

           कहने का सार यह है कि "इतनी उत्तम सुविधाएं सुख साधन स्वतंत्रता आदि जो मनुष्य को मिली हैं, यह मुफ्त में नहीं मिली। यह अनेक उत्तम कर्मों का फल है।" "अब तो सौभाग्य से आपको मनुष्य जन्म मिला है, यह पूर्व जन्म के शुभ कर्मों का फल है। और यह फल ईश्वर की कृपा से प्राप्त हुआ है, अर्थात मनुष्य योनि प्राप्त करने में जहां आपका पुरुषार्थ कारण है, वहां ईश्वर की कृपा भी एक बहुत बड़ा कारण है।"       

          यदि ईश्वर आपके कर्मों का हिसाब न रखे, और समय आने पर आपको ठीक-ठीक फल न दे, तो आप ईश्वर पर मुकदमा नहीं कर सकते, कि "हे ईश्वर! आप हमारे कर्मों का फल क्यों नहीं देते ?" "ऐसी भाषा तो उस व्यक्ति के लिए बोली जा सकती है, जिसने आपसे कुछ ऋण ले रखा हो और वह ऋण चुकाता न हो। तब आप ऐसी भाषा उस व्यक्ति के लिए बोल सकते हैं।" "परंतु ईश्वर के लिए ऐसी भाषा नहीं बोल सकते। क्योंकि ईश्वर ने आपसे कोई ऋण नहीं ले रखा। ईश्वर का स्वभाव दयालु एवं परोपकारी होने से वह अपनी उदारता एवं दयालुता के कारण आपके कर्मों का पूरा-पूरा हिसाब भी रखता है, और समय आने पर आपके कर्मों का ठीक-ठीक फल भी देता है। इसलिए उसकी कृपा (उपकार, एहसान) स्वीकार करनी चाहिए।" 

        "तो अब पिछले कर्मों और ईश्वर की कृपा से इस बार तो आपको अच्छा मनुष्य जन्म मिल गया। क्या आप आगे भी ऐसा ही उत्तम मनुष्य जन्म प्राप्त करना चाहेंगे?" "यदि हां, तो सभ्यता नम्रता परोपकार दान दया ईश्वर भक्ति यज्ञ संध्या माता-पिता की सेवा गौ आदि प्राणियों की रक्षा करना आदि उत्तम कर्मों का आचरण करें। अन्यथा अगला जन्म मनुष्य योनि में नहीं मिलेगा। और संसार में शेर भेड़िया सांप बिच्छू वृक्ष वनस्पति आदि लाखों योनियां हैं, उनमें कहीं नंबर लगेगा।"

         "यदि उन योनियों में कहीं नंबर लग गया, तो हो सकता है, कुछ लोग आपको डिस्कवरी चैनल पर भी देखें, और अपना मनोरंजन करें। इसलिए मनुष्य जीवन का मूल्य समझें, और इसका सदुपयोग करें। बुराइयों से बचें तथा उत्तम कर्मों का आचरण करें, तभी आपका भविष्य सुरक्षित होगा।"

----- "स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।"साभार ऋतु सिसोदिया Facebook wall

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पहला मेंढक जो अंडे नहीं बच्चे देता है

वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके...

क्या है आदि शंकर द्वारा लिखित ''सौंदर्य लहरी''की महिमा

?     ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥  अर्थ :'' हे! परमेश्वर ,हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों  (गुरू और शिष्य) को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें''।      ''सौंदर्य लहरी''की महिमा   ;- 17 FACTS;- 1-सौंदर्य लहरी (संस्कृत: सौन्दरयलहरी) जिसका अर्थ है “सौंदर्य की लहरें” ऋषि आदि शंकर द्वारा लिखित संस्कृत में एक प्रसिद्ध साहित्यिक कृति है। कुछ लोगों का मानना है कि पहला भाग “आनंद लहरी” मेरु पर्वत पर स्वयं गणेश (या पुष्पदंत द्वारा) द्वारा उकेरा गया था। शंकर के शिक्षक गोविंद भगवदपाद के शिक्षक ऋषि गौड़पाद ने पुष्पदंत के लेखन को याद किया जिसे आदि शंकराचार्य तक ले जाया गया था। इसके एक सौ तीन श्लोक (छंद) शिव की पत्नी देवी पार्वती / दक्षिणायनी की सुंदरता, कृपा और उदारता की प्रशंसा करते हैं।सौन्दर्यलहरी/शाब्दिक अर्थ...

स्त्री-पुरुष क्यों दूसरे स्त्री-पुरुषों के प्रति आकर्षित हैं आजकल

 [[[नमःशिवाय]]]              श्री गुरूवे नम:                                                                              #प्राण_ओर_आकर्षण  स्त्री-पुरुष क्यों दूसरे स्त्री-पुरुषों के प्रति आकर्षित हैं आजकल इसका कारण है--अपान प्राण। जो एक से संतुष्ट नहीं हो सकता, वह कभी संतुष्ट नहीं होता। उसका जीवन एक मृग- तृष्णा है। इसलिए भारतीय योग में ब्रह्मचर्य आश्रम का यही उद्देश्य रहा है कि 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करे। इसका अर्थ यह नहीं कि पुरष नारी की ओर देखे भी नहीं। ऐसा नहीं था --प्राचीन काल में गुरु अपने शिष्य को अभ्यास कराता था जिसमें अपान प्राण और कूर्म प्राण को साधा जा सके और आगे का गृहस्थ जीवन सफल रहे--यही इसका गूढ़ रहस्य था।प्राचीन काल में चार आश्रमों का बड़ा ही महत्व था। इसके पीछे गंभीर आशय था। जीवन को संतुलित कर स्वस्थ रहकर अपने कर्म को पूर्ण करना ...