लौकिक व अलौकिक जगत में तारतम्य बिठाने में बढ़ी असहजता हुई
क्योंकि आत्मज्ञान व आत्मबोध ही ना था
शायद यही कारण रहा होगा सत्य की खोज को गौतम बुद्ध ने संसार का परित्याग कर वन गमन किया
और ऐसा ही उत्तर चढ़ाव हर तीसरे चौथे व्यक्ति के जीवन मे घटित हो रहा किन्तु वह मोह का लोभ का लालच का परित्याग नही कर पा रहा
आत्म कल्याण करना है तो आत्मसंयमी बनो त्याग दो उस सभी का जो तुम्हारी उन्नति में बाधक है
आत्मकल्याण तुम्हारी प्राथमिकता है
जब आप स्वयं आत्मसन्तुष्ट नही मानसिक मजबूत स्थिति में नही तो तुम किसी के सहयोगी बन ही नही सकते परोपकारी बन ही नही सकते
अतः विनम्र निवेदन सन्तानो को विवाह संस्कार से बांधकर जिम्मेदारियों में जकड़कर आप सांसारिक कर्तव्य से मुक्त हो सकते है किंतु इससे अन्य जो नई समस्याए उतपन्न होती है फिर उन जिम्मेदारियों को उठाने से मोह क्यों मोड़ते है
इन समस्याओं के जन्मदाता तो आप ही है
बुद्धि व विवेक को जाग्रत कीजिये परवरिश सुशिक्षा व संस्कार के साथ कीजिये बहुत बड़ा कर्तव्य है विवाह फिर सन्तान को विशाल बृक्ष बनाना
ना कि तुम्हारी गलतियों की सजा का भुगतान किसी की बेटी को बलि का बकरा बनकर मूल्य पत्नी होने का चुकाना पड़े तो इस्वर के न्याय से घबराना मत
समझदार को संकेत पर्याप्त है
जागरूकता ही जीवित की निशानी है
ॐ,🚩
मम हरि शरणं साभार ऋतु सिसोदिया
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