अब तक यही माना जाता रहा है कि यह वायरस शरीर के जिस जिस हिस्से में पहुंचता है, वहां ही नुकसान पहुंचाता है. लेकिन अब रिसर्चरों ने पाया है कि दिमाग में घुसे बिना भी कोरोना दिमाग को नुकसान पहुंचाता है.
कोरोना वायरस नाक या मुंह के रास्ते सांस की नली में पहुंचता है और वहां से फेफड़ों में घुस जाता है. यही वजह है कि कोरोना टेस्ट के लिए नाक या गले से सैंपल लिया जाता है. इसी कारण सांस में दिक्कत भी आती है. अधिकतर मौतों का कारण भी यही होता है कि फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं.
रिसर्चरों ने ऐसे 19 लोगों के मस्तिष्क पर शोध किया जिनकी मौत कोविड-19 के कारण हुई है. इन्होंने पहले शरीर की उन कोशिकाओं पर ध्यान दिया जिन्हें कोरोना वायरस के कारण सबसे ज्यादा नुकसान होता है. इसमें ओल्फैक्ट्री बल्ब शामिल है जो गंध को समझने के लिए जिम्मेदार होता है. इसके बाद उन्होंने ब्रेनस्टेम की जांच की, जो सांस लेने और दिल के धड़कने का काम कराता है.
19 में 14 मरीजों में ये दोनों या फिर इनमें से किसी एक को नुकसान हुआ था. किसी मरीज में दिमाग के इन हिस्सों की रक्त कोशिकाएं जम गई थीं, तो किसी में कोशिशकाओं में लीकेज देखा गया. दिमाग में जहां जहां भी ऐसा लीकेज मिला, वहां इम्यून सिस्टम में खराबी भी दर्ज की गई. लेकिन रिसर्चर ये देख कर हैरान थे कि इस सारे नुकसान के बावजूद वहां वायरस बिलकुल भी मौजूद नहीं था.
द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपी इस रिपोर्ट में डॉ अवींद्र नाथ ने लिखा है, "हम भौचक्के रह गए." अमेरिका की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स एंड स्ट्रोक के डॉक्टर नाथ ने बताया कि उनकी रिसर्च टीम ने दिमाग में जिस तरह का नुकसान देखा, वैसा आम तौर पर स्ट्रोक या फिर न्यूरो-इंफ्लेमेटरी रोगों में ही देखा जाता है, "अब तक हमारे नतीजे यह दिखाते हैं कि शायद यह नुकसान सार्स-कोव-2 वायरस ने सीधे तौर पर नहीं किया है. भविष्य में हम यह पता लगाने की योजना बना रहे हैं कि कोविड-19 किस तरह से मस्तिष्क की रक्त कोशिकाओं पर असर करता है और क्या इससे मरीजों में छोटे और लंबे समय के अलग अलग लक्षण पैदा होते हैं."
महामारी के दौरान ज्यादा गिर रहे हैं बाल
एक अन्य शोध में यह भी पाया गया है कि कोरोना महामारी के दौरान न्यूयॉर्क शहर में लोगों के बाल पहले से ज्यादा झड़ रहे हैं. शहर के एक ऐसे इलाके में जहां अश्वेत लोगों की आबादी अधिक है, वहां बालों के रोग टेलोजेन इफ्लूवियम (टीई) में 400 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. यह शोध अमेरिका के जर्नल ऑफ द अमेरिकन अकैडमी ऑफ डर्मेटोलॉजी में छपा है. इसके अनुसार नवंबर 2019 से फरवरी 2020 के बीच टीई के मात्र 0.4 प्रतिशत ही मामले थे, जबकि अगस्त तक यह बढ़कर 2.3 प्रतिशत हो चुका था.
रिपोर्ट में लिखा गया है, "अभी यह साफ नहीं है कि टीई की असली वजह कोरोना महामारी के कारण लोगों में मनोवैज्ञानिक रूप से हुए बदलाव हैं या फिर यह अत्यंत भावुक तनाव का नतीजा है." डॉक्टरों का कहना है कि अकसर किसी सदमे के करीब तीन महीने बाद लोगों में टीई के लक्षण दिखते हैं. ऐसे में मुमकिन है कि न्यूयॉर्क में बड़े स्तर पर कोरोना फैलने से लोगों को भीषण तनाव हुआ हो, जिसके तीन महीने बाद बाल गिरने के मामलों में वृद्धि देखी गई. sabhar : dw.de
वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
vigyan ke naye samachar ke liye dekhe