सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हिन्दू धर्म और टाइम मशीन का रहस्य समय यात्रा

हम सब समय में यात्रा करते हैं. पिछले साल से में एक साल समय में आगे बढ़ चूका हूँ. दूसरें शब्दों में कहूँ तो हम सब प्रति घंटे 1 घंटा की दर से समय में यात्रा करते हैं. लेकिन यहाँ पर सवाल यह है कि क्या हम प्रति घंटे 1 घंटा की दर से भी ज्यादा तेजी से यात्रा कर सकते है? क्या हम समय में पीछे जा सकते हैं? क्या हम प्रति घंटे 2 घंटे की रफ़्तार से यात्रा कर सकते है? 20 वी सदी के महान वैज्ञानिकअल्बर्ट आइंस्टीन ने विशेष सापेक्षता&(Special Relativity) नामक;सिद्धांत विकसित किया था. विशेष सापेक्षता के सिध्धांत के बारे में तो कल्पना करना भी मुश्किल हैं क्योंकि यह;रोजमर्रा की जिंदगी से कुछ अलग तरह की ही चीज़े उजागर करता हैं. इस सिध्धांत के मुताबिक समय और अंतरिक्ष एक ही चीज़ हैं. दोनों एकदूसरे से जुड़े हुए हैं. जिसे space-time भी कहते हैं. space-time में कोई भी चीज़ यात्रा कर रही हो उसकी गति की एक सीमा हैं-;3 लाख किलोमीटर. यह प्रकाश की गति हैं.विशेष सापेक्षता का सिध्धांत यह भी दर्शाता हैं की space-time में यात्रा करते वक्त कई आश्चर्यजनक चीजे होती हैं, खास कर के जब आप प्रकाश की गति या उसके आसपास की गति पा लेते हैं. जिन लोगो को आपने पृथ्वी पर पीछे छोड़ दिया हैं उनकी तुलना में आपके लिए समय की गति कम हो जाएगी. आप इस असर को वापस आए बिना नोटिस नहीं कर सकते हैं. सोचिए की आपकी उम्र अभी 15 साल की हैं और आप एक अंतरिक्ष यान में प्रकाश की गति की तुलना में 99.5% तक की गति पा लेते हैं. अपनी यात्रा के दौरान आपने अपने 5 जनमदिन सेलिब्रेट किए, यानी आपने अंतरिक्ष यान में 5 साल बिताए. 5 साल के सफ़र के बाद आप 20 साल की उम्र में अपने घर वापस आते हैं. आप देखेंगे की आपकी उम्र के आपके दोस्त 65 साल के हो गए होंगे. क्योंकि अंतरिक्ष यान में समय आपके लिए ज्यादा धीरे से बिता था. आपने जितने समय में 5 साल अनुभव किए उनते ही समय में आपके दोस्तों ने 50 साल महसूस किए.आइंस्टीन के General Relativity के सिध्धांत के मुताबिक किसी भी तरह के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में समय की रफ़्तार कम हो जाती हैं. जैसे समय की गति हमारी पृथ्वी पर अंतरिक्ष की तुलना में कम होगी. जैसे की किसी ब्लैक होल के नजदीक गुरुत्वाकर्षण बहुत तीव्र हो जाता हैं. ऐसी जगह पर समय की रफ़्तार बहुत ही कम हो जाती हैं. तीव्र गुरुत्वाकर्षण की वजह से space-time में कई विकृतियाँ पैदा हो जाती हैं. ऐसी विकृतियों से पैदा हो सकते हैं, जो की;में सफ़र करने के लिए शार्टकट हो सकते हैं. कुछ वैज्ञानिक तो ऐसा ही मानते हैं. जो भी हो मेरा तो यहीं मानना हैं की समय यात्रा सिर्फ भविष्य की ही मुमकिन हो सकती हैं. क्योंकि समय में पीछे जाना मुमकिन ही नहीं हैं. क्योंकि जो हो गया वह हम कभी बदल नहीं सकते लेकिन जो होनेवाला हैं वह अभी भी हाथ में हैं. हम शायद भविष्य की सैर कर सकते हैं लेकिन उसके लिए हमे बहुत ही उम्दा टेक्नोलॉजी की जरुरत होगी और बहुत ज्यादा उर्जा की भी जरुरत होगी. इंग्लैंड के मशहूर लेखक हर्बट जार्ज वेल्स ने 1895 में 'द टाइम मशीन' नामक एक उपन्यास प्रकाशित किया, तो समूचे योरप में तहलका मच गया। इस उपन्यास में वेल्स ने 'टाइम मशीन' की अद्भुत कल्पना की। यह उनकी कल्पना का एक ऐसा आविष्कार था, जिसे विश्व भर में विज्ञान लेखक आज तक उपयोग कर रहे हैं। उपन्यास से प्रेरित होकर इस विषय पर और भी कई तरह के कथा साहित्य रचे गए। इस कॉन्सेप्ट पर हॉलीवुड में एक फिल्म भी बनी। हालांकि वेल्स के उपन्यास में व्यावहारिक रूप से कई विसंगतियां है।टाइम मशीन अभी एक कल्पना है।;टाइम ट्रेवल और टाइम मशीन, यह एक ऐसे उपकरण की कल्पना है जिसमें बैठकर कोई भी मनुष्य भूतकाल या भविष्य के किसी भी समय में सशरीर अपनी पूरी मानसिक और शारीरिक क्षमताओं के साथ जा सकता है। अधिकतर वैज्ञानिक मानते हैं कि यह कल्पना ही रहेगी कभी हकीकत नहीं बन सकती, क्योंकि यह अतार्किक बात है कि कोई कैसे अतीत में या भविष्य में जाकर अतीत या भविष्य के सच को जान कर उसे बदल दे। जैसे कोई भविष्य में से आकर आपसे कहे कि वह आपका पोता है या अतीत में से आकर कहे कि वह आपका परदादा है, जो यह संभव नहीं है।वैज्ञानिक कहते हैं कि दरअसल,जो घटना घट चुकी है उसका दृश्य और साउंड ब्रह्मांड में मौजूद जरूर रहेगा। जिस तरह आप एक फिल्म देखते हैं उसी तरह वह टाइम मशीन के द्वारा दिखाई देगा। आप उसमें कुछ भी बदलाव नहीं कर सकते। यदि ऐसा करने गए तो वह पार्टिकल्स बिखरकर और अस्पष्‍ट हो जाएंगे। दूसरा यह कि आप टाइम ट्रैवल से जो घटना नहीं घटी है, लेकिन जो घटने वाली है उसे भी देख सकते हैं, क्योंकि सभी कार्य और कारण की श्रृखंला में बंधे हुए हैं। हालांकि विद्वान यह भी मानते हैं कि भविष्य को जानकर वर्तमान में कुछ सुधारकर भविष्य को बदला जा सकता है, लेकिन अतीत को नहीं।प्राचीनकाल में सनतकुमार,;नारद, अश्‍विन कुमार आदि कई हिन्दू देवता टाइम ट्रैवल करते थे।टाइम मशीन की कल्पना भी भारतीय धर्मग्रंथों से प्रेरित है। आप सोचेंगे कैसे? वेद और पुराणों में ऐसी कई घटनाओं का जिक्र है। उदाहरणार्थ रेवत नाम का एक राजा ब्रह्मा के पास मिलने ब्रह्मलोक गया और जब वह धरती पर पुन: लौटा तो यहां एक चार युग बीत चुके थे। रेवती के पिता रेवत अपनी पुत्री को लेकर ब्रह्मा के पास योग्य वर की तलाश में गए थे। ब्रह्मा के लोक में उस समय हाहा, हूहू नामक दो गंधर्व गान प्रस्तुत कर रहे थे। गान समाप्त होने के उपरांत रेवत ने ब्रह्मा से पूछा अपनी पुत्री के वरों के बारे में।ब्रह्मा ने कहा, 'यह गान जो तुम्हें अल्पकालिक लगा, वह चतुर्युग तक चला। जिन वरों की तुम चर्चा कर रहे हो, उनके पुत्र-पौत्र भी अब जीवित नहीं हैं। अब तुम धरती पर जाओ और शेषनाग के साथ इसका पाणिग्रहण कर दो जो वह बलराम के रूप में अवतरित हैं।' अब सवाल यह उठता है कि कोई व्यक्ति चार युग तक कैसे जी सकता है? कुछ ऋषि और मुनि सतयुग में भी थे, त्रेता में भी थे और द्वापर में भी। इसका यह मतलब कि क्या वे टाइम ट्रैवल करके पुन: धरती पर समय समय पर लौट आते थे?इसका जवाब है कि हमारी समय की अवधारणा धरती के मान से है लेकिन जैसे ही हम अंतरिक्ष में जाते हैं, समय बदल जाता है। जो व्यक्ति ब्रह्मलोक होकर लौटा उसके लिए तो उसके मान से 1 वर्ष ही लगा। लेकिन अंतरिक्ष के उक्त 1 वर्ष में धरती पर एक युग बीत गया, बुध ग्रह पर तो 4 युग बीत गए होंगे, क्योंकि बुध ग्रह का 1 वर्ष तो 88 दिनों का ही होता है।पहले यह माना जाता था कि समय निरपेक्ष और सार्वभौम है अर्थात सभी के लिए समान है यानी यदि धरती पर 10 बज रहे हैं तो क्या यह मानें कि मंगल ग्रह पर भी 10 ही बज रहे होंगे? लेकिन आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार ऐसा नहीं है। समय की धारणा अलग-अलग है।आइंस्टीन ने कहा कि दो घटनाओं के बीच का मापा गया समय इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें देखने वाला किस गति से जा रहा है। मान लीजिए की दो जुड़वां भाई हैं- A और B। एक अत्यंत तीव्र गति के अंतरिक्ष यान से किसी ग्रह पर जाता है और कुछ समय बाद पृथ्वी पर लौट आता है जबकि B घर पर ही रहता है। A के लिए यह सफर हो सकता है 1 वर्ष का रहा हो, लेकिन जब वह पृथ्वी पर लौटता है तो 10 साल बीत चुके होते हैं। उसका भाई B अब 9 वर्ष बड़ा हो चुका है, जबकि दोनों का जन्म एक ही दिन हुआ था। यानी A 10 साल भविष्य में पहुंच गया है। अब वहां पहुंचकर वह वहीं से धरती पर चल रही घटना को देखता है तो वह अतीत को देख रहा होता है। जैसे एक गोली छूट गई लेकिन यदि आपको उसको देखना है तो उस गोली से भी तेज गति से आगे जाकर उसे क्रॉस करना होगा और फिर पलटकर उसको देखना होगा तभी वह तुम्हें दिखाई देगी। इसी तरह ब्रह्मांड में कई आवाजें, चित्र और घटनाएं जो घटित हो चुकी हैं वे फैलती जा रही हैं। वे जहां तक पहुंच गई हैं वहां पहुंचकर उनको पकड़कर सुना होगा।यदि ऐसा हुआ तो...? कुछ ब्रह्मांडीय किरणें प्रकाश की गति से चलती हैं। उन्हें एक आकाशगंगा पार करने में कुछ क्षण लगते हैं लेकिन पृथ्वी के समय के हिसाब से ये दसियों हजार वर्ष हुए।भौतिकशास्त्र की दृष्टि से यह सत्य है लेकिन अभी तक ऐसी कोई; टाइम मशी नहीं बनी जिससे हम अतीत या भविष्य में पहुंच सकें। यदि ऐसे हो गया तो बहुत बड़ी क्रांति हो जाएगी। मानव जहां खुद की उम्र बढ़ाने में सक्षम होगा वहीं वह भविष्य को बदलना भी सीख जाएगा। इतिहास फिर से लिखा जाएगा।एक और उदाहारण से समझें। आप कार ड्राइव कर रहे हैं आपको पता नहीं है कि 10 किलोमीटर आगे जाकर रास्ता बंद है और वहां एक बड़ा-सा गड्डा है, जो अचानक से दिखाई नहीं देता। आपकी कार तेज गति से चल रही है। अब आप सोचिए कि आपके साथ क्या होने वाला है? लेकिन एक व्यक्ति हेलीकॉप्टर में बैठा है और उसे यह सब कुछ दिखाई दे रहा है अर्थात यह कि वह आपका भविष्य देख रहा है। यदि आपको किसी तकनीक से पता चल जाए कि आगे एक गड्‍ढा है तो आप बच जाएंगे। भारत का ज्योतिष भी यही करता है कि वह आपको गड्ढे लेकिन एक अतार्किक उदाहरण भी दिया जा सकता है, जैसे कि एक व्यक्ति विवाह करने से पहले अपने पुत्र को देखने जाता है टाइम मशीन से। वहां जाकर उसे पता चलता है कि उनका पुत्र तो जेल के अंदर देशद्रोह के मामले में सजा काट रहा है तो... तब वह दो काम कर सकता है या तो वह किसी अन्य महिला से विवाह करे या विवाह करने का विचार ही त्याग दे।इंग्लैंड के वैज्ञानिक ने किया दावा, बना सकता है क्या प्रकाश के लेज़र Tunnel से भविष्य में संदेश भेजा जा सकता है?अगर ऐसा हो सकता है, तो भविष्य के लोग हमसे क्या कहेंगे?69 वर्षीय Ronald Mallett का यह मानना है कि उन्होंने एक ऐसा Tunnel डिज़ाइन किया है, जो समय से आगे संदेश भेज सकता है. उनका ये कहना है कि इस शताब्दी की ये पहली Time Machine सिद्ध होगी. Mallett अभी University of Connecticut में ख्याति-प्राप्त Theoretical Physicist हैं. वो फ़िलहाल एक डॉक्यूमेंटरी पर काम कर रहे हैं, जिसका विषय है टाइम मशीन बनाने की खोज Mallett ने 10 वर्ष की उम्र से ही शुरु कर दी थी. अपने पिता की मौत के बाद Mallett ने इसे पूरा करने की ठान ली. अपने डॉक्यूमेंटरी ‘Mallett कहते हैं कि, उन्हें ये निर्णय बिलकुल सही लगा, क्योंकि वो अपने मृत पिता को वापस देखना चाहते थे. Mallett के दिमाग में ये सवाल था कि क्या कोई समय पर नियंत्रण कर सकता है? Mallett का ये कहना है, “मेरा व्यक्तित्व, मेरा एक सफल Physicist बनना ये सब बस मेरा पिता से प्यार की वजह से है. मेरा एक एक Mission है, जिसका लक्ष्य है ये पता लगाना कि टाइम मशीन कैसे बनाते हैं? टाइम मशीन कैसे काम करेगीMallett की टाइम मशीन का मूल आधार Einstein की Theory of Relativity है. इस सिद्धांत के अनुसार ये बताया गया है कि प्रकाश की किरणें भी गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र पैदा कर सकती हैं.एक Scientific Paper में Mallett ने लिखा कि प्रकाश के एक अस्थायी Cylinder के संदर्भ में मजबूत गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए मेरे पास एक सटीक समाधान है, जो Einstein के आंतरिक और बाह्य गुरुत्वाकर्षण और प्रकाश के समीकरणों के विश्लेषण पर आधारित हैजुड़े हुए लाइन्स की उपस्थिति भविष्य और भूत में समय यात्रा करने का संकेत देती हैं. इस संकेत से ही प्रकाश के अस्थायी Cylinder की सहायता से टाइम मशीन के निर्माण की संभावना दिखती है. का ये मानना है कि भौतिक सिद्धांत पर समय यात्रा असंभव है, पर वो ऐसा सोचते है कि अगर समय के साथ सन्देश भेजा जा सकता है, तो प्रकाश के Tunnel की मदद से N भी भेजे जा सकेंगे कहते हैं कि 1 को Spin Up की दिशा में लगाने पर और 0 को Spin Down की दिशा में लगाने पर हम Neutron Spin के द्वारा बाइनरी कोड भी भेज सकते हैं अगर वाकई टाइम मशीन बन सकती है तो क्या ये सपनों की दुनिया में जीना जैसा नहीं होगा? विकास की दिशा में ये पहल एक चमत्कारी वरदान की भांति सिद्ध होगी. भविष्य और अतीत में सफ़र करना मनुष्य के लिए अत्यंत रोमांचकारी होगा स्रोत : www.gazabpost.com, वेबदुनिआ , www.universeinhindi.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

क्या है आदि शंकर द्वारा लिखित ''सौंदर्य लहरी''की महिमा

?     ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥  अर्थ :'' हे! परमेश्वर ,हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों  (गुरू और शिष्य) को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें''।      ''सौंदर्य लहरी''की महिमा   ;- 17 FACTS;- 1-सौंदर्य लहरी (संस्कृत: सौन्दरयलहरी) जिसका अर्थ है “सौंदर्य की लहरें” ऋषि आदि शंकर द्वारा लिखित संस्कृत में एक प्रसिद्ध साहित्यिक कृति है। कुछ लोगों का मानना है कि पहला भाग “आनंद लहरी” मेरु पर्वत पर स्वयं गणेश (या पुष्पदंत द्वारा) द्वारा उकेरा गया था। शंकर के शिक्षक गोविंद भगवदपाद के शिक्षक ऋषि गौड़पाद ने पुष्पदंत के लेखन को याद किया जिसे आदि शंकराचार्य तक ले जाया गया था। इसके एक सौ तीन श्लोक (छंद) शिव की पत्नी देवी पार्वती / दक्षिणायनी की सुंदरता, कृपा और उदारता की प्रशंसा करते हैं।सौन्दर्यलहरी/शाब्दिक अर्थ सौन्दर्य का

क्या हैआदि शंकराचार्य कृत दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम्( Dakshinamurti Stotram) का महत्व

? 1-दक्षिणामूर्ति स्तोत्र ;- 02 FACTS;- दक्षिणा मूर्ति स्तोत्र मुख्य रूप से गुरु की वंदना है। श्रीदक्षिणा मूर्ति परमात्मस्वरूप शंकर जी हैं जो ऋषि मुनियों को उपदेश देने के लिए कैलाश पर्वत पर दक्षिणाभिमुख होकर विराजमान हैं। वहीं से चलती हुई वेदांत ज्ञान की परम्परा आज तक चली आ रही  हैं।व्यास, शुक्र, गौड़पाद, शंकर, सुरेश्वर आदि परम पूजनीय गुरुगण उसी परम्परा की कड़ी हैं। उनकी वंदना में यह स्त्रोत समर्पित है।भगवान् शिव को गुरु स्वरुप में दक्षिणामूर्ति  कहा गया है, दक्षिणामूर्ति ( Dakshinamurti ) अर्थात दक्षिण की ओर मुख किये हुए शिव इस रूप में योग, संगीत और तर्क का ज्ञान प्रदान करते हैं और शास्त्रों की व्याख्या करते हैं। कुछ शास्त्रों के अनुसार, यदि किसी साधक को गुरु की प्राप्ति न हो, तो वह भगवान् दक्षिणामूर्ति को अपना गुरु मान सकता है, कुछ समय बाद उसके योग्य होने पर उसे आत्मज्ञानी गुरु की प्राप्ति होती है।  2-गुरुवार (बृहस्पतिवार) का दिन किसी भी प्रकार के शैक्षिक आरम्भ के लिए शुभ होता है, इस दिन सर्वप्रथम भगवान् दक्षिणामूर्ति की वंदना करना चाहिए।दक्षिणामूर्ति हिंदू भगवान शिव का एक

पहला मेंढक जो अंडे नहीं बच्चे देता है

वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके